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________________ xiii जयोदय महाकाव्य में शोध के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष को अछूता पाकर इस पर शोधकार्य करने की तृष्णा मन में जागी और मैंने बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल (म.प्र.) में संस्कृत और प्राकृत के रीडर आदरणीय डॉ० रतनचन्द्रजी जैन के समक्ष अपना विचार निवेदित किया और उनसे परामर्श देने का अनुरोध किया । शोधकार्य के लिए मार्गदर्शन करने की भी साग्रह प्रार्थना की। डॉक्टर साहब को भी शोध का विषय उपयुक्त प्रतीत हुआ । उन्होंने बड़ी कृपाकर मार्गदर्शन करना भी स्वीकार कर लिया। इस प्रकार मेरे मनोरथ का मार्ग प्रशस्त हो गया । I मैंने अपने शोध प्रबन्ध को 'जयोदय महाकाव्य का अनुशीलन' शीर्षक दिया है और बारह अध्यायों में विभाजित किया है । प्रथम अध्याय में 'जयोदय के प्रणेता महाकवि भूरामलजी (आचार्य ज्ञानसागरजी) का जीवन वृत्तान्त, चरित्र एवं उनके द्वारा संस्कृत एवं हिन्दी में रचित विपुल साहित्य का परिचय दिया गया है । इसमें दो नवीन जानकारियाँ दी गई हैं। एक, यह कि महाकवि का राशि का नाम 'शान्तिकुमार' था दूसरी यह कि उन्होंने क्षुल्लकदीक्षा आचार्य वीरसागर जी से ग्रहण नहीं की थी अपितुं भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा के समक्ष स्वयं ही ग्रहण कर ली थी। महाकवि की दो और कृतियों का भी इसमें परिचय दिया गया है । 'मुनिमनोरंजनशतक' (मुनि मनोरंजनाशीति) तथा 'ऋषि कैसा होता है ?" द्वितीय अध्याय में जयोदय के कथानक के साथ उसके मूल स्रोत पर प्रकाश डाला गया है 1 कवि ने रसात्मकता के अनुरोध से मूलकथा में आवश्यक परिवर्तन किये हैं। उनके औचित्य का विवेचन भी इसमें किया गया है। जयोदय के महाकाव्यत्व और काव्यत्व को भी इस अध्याय में लक्षण की कसौटी पर कसा गया है। जयोदय की भाषा को काव्यात्मक अर्थात् लाक्षणिक एवं व्यंजक बनाने के लिए कवि ने जिन उक्ति वक्रताओं का प्रयोग किया है, उनका विश्लेषण तृतीय अध्याय का विषय है । मुहावरे, प्रतीक, अलंकार, विम्ब, लोकोक्तियाँ एवं सूक्तियाँ भी काव्यभाषा के उपादान हैं। अतः जयोदय में प्रयुक्त मुहावरों एवं प्रतीकों का अभिव्यंजनात्मक वैशिष्ट्य चतुर्थ अध्याय में, अलंकारों का पंचम में, बिम्बों का षष्ठ में, तथा लोकोक्तियों और सूक्तियों का काव्यात्मक चारुत्व सप्तम अध्याय में विश्लेषित किया गया है । अष्टम अध्याय जयोदय में प्रवाहित विभिन्न रसों की मनोवैज्ञानिक व्यंजना का प्रकाशन करता है ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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