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________________ षष्टम पुष्प - जैनदर्शन में रत्नत्रय का स्वरूप - डॉ. नरेन्द्रकुमार द्वारा लिखित सप्तम पुष्प - बौद्ध दर्शन पर शास्त्रीय समिक्षा - डॉ. रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर अष्टम पुष्प - जैन राजनैतिक चिन्तन धारा - डॉ. श्रीमति विजयलक्ष्मी जैन नवम पुष्प - आदि ब्रह्मा ऋषभदेव - बैस्टिर चम्पतराय जैन दशम पुष्प - मानव धर्म - पं. भूरामलजी शास्त्री (आचार्य ज्ञानसागरजी) एकादशं पुष्प - नीतिवाक्यामृत - श्रीमत्सोमदेवसूरि-विरचित द्वादशम् पुष्प - जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन - डॉ. कैलाशपति पाण्डेय त्रयोदशम् पुष्प - अनेकान्त एवं स्याद्वाद विमर्श - डॉ. रमेशचन्द जैन, बिजनौर । चर्तुदशम् पुष्प - Humanity A Religion - मानव धर्म का अंग्रेजी अनुवाद पञ्चदशं पुष्प - जयोदय महाकाव्य का शैली वैज्ञानिक अध्ययन - यह पुस्तक महाकवि आचार्य ज्ञानसागर द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य जयोदय पर शोध ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया गया है । इसमें जयोदय महाकाव्य की शैली का बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुतीकरण करके जयोदय महाकाव्य के हृदय को उद्घाटित कर साहित्य जगत के लिए एक महत्वपूर्ण शोध विषय उपस्थित किया गया है । डॉ. आराधना जैन का परिश्रम एवं बुद्धि कौशल प्रशंसनीय है तथा इस शोध के निर्देशक डॉ. रतनचन्द जी भोपाल, भी अनुशंसा के पात्र हैं जिन्होनें अपने निर्देशन में विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न छात्रा को जयोदय महाकाव्य के गूढ़ सहस्यों को निर्देशित करके इस शोध कृति को साहित्य जगत के लिये समर्पित कराया है। ___इसका प्रथम प्रकाशन मुनि संघ सेवा समिति, गंज वासीदा (विदिशा) मध्यप्रदेश द्वारा प्रकाशित किया गया था । वर्तमान में इसकी प्रतिया अनुपलब्ध होने के कारण हमारा केन्द्र इसको पुनः प्रकाशित करके साहित्य पिपासुओं के कर कमलों में समर्पित करने का विचार कर प्रकाशित कर रहा है । पाठक इसे पढ़कर ज्ञानसागर महाराज को साहित्य के रहस्यों को हस्तगत कर सकेंगे, ऐसी मेरी भावना हैं । पं. अरूणकुमार शास्त्री ब्यावर (राज.) बृहद-चतुष्टयी) जयोदय महाकाव्य राष्ट्रिय विद्वत्संगोष्ठी (दिनांक 29.9.95 से 3.10.95) मदनगंजकिशनगढ़ में देश के विविध भागों से समागत हम सब साहित्याध्येता महाकाव्य के अनुशीलन निष्कर्षों पर सामूहित काव्यशास्त्रीय विचारोपरान्त वाणीभूषण महाकवि | भूरामल शास्त्री द्वारा प्रणीत जयोदय महाकाव्य को संस्कृत साहित्येतिहास में बृहत्रयी संज्ञित शिशुपालवध, किरातार्जुनीय एवं नैषधीयचरित महाकाव्य के समकक्ष पाते हैं। अतः हम सब बृहत्त्रयी संज्ञित तीनों महाकाव्यों के साथ जयोदय महाकाव्य को सम्मिलित कर बृहच्चतुष्टयी के अभिधान से संजित करते हैं ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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