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________________ DP गया था कि आचार्य ज्ञानसागर के. साहित्य पर पृथक-पृथक विद्वानों से पृथकपृथक विषयों पर लगभग तीन-तीन सौ पेज के महा-निबन्ध लिखाये जायें, जिससे शोध प्रबन्ध करने वालों को सुविधा पड़ सके । यह कार्य लगभग 50 विद्वानों को सौंपा गया था, जिसमें से 40 विद्वानों ने महा-निबन्ध लिखने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। पाँचवा निर्णय लिया गया है कि इन समस्त कार्यों को कराने हेतु एक निश्चित स्थान पर किसी योग्य विद्वान के निर्देशन में एक संस्था की स्थापना होनी चाहिए। ब्यावर संगोष्ठी के समय पर ब्यावर में डॉ. रमेशचन्द बिजनौर एवं डॉ. अरुण कुमार शास्त्री के संयोजकत्व में आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र की स्थापना की गई । संस्था का मुख्य कार्य आचार्य ज्ञानसागर से सम्बन्धित निबंध एवं शोध ग्रन्थों का प्रकाशन करना है । साथ ही आचार्य ज्ञान सागर महाराज के साहित्य पर शोध करने वाले छात्रों को निर्देशकों की स्वीकृति पर पाँच सौ रुपये प्रतिमाह शोध छात्रवृत्ति प्रदान करना । इस प्रकार और भी अनेक निर्णय गोष्ठियों में लिए गए हैं, जो पृथक्पृथक् स्मारिकाओं में प्रकाशित किये जा चुके हैं । सम्पूर्ण गोष्ठियों में वांचे गये सभी लेख प्रकाशित किये जा चुके हैं, शोधार्थी केन्द्र से सम्पर्क कर प्राप्त कर सकते हैं। बीसवीं सदी के इस महान् साहित्य साधक की साहित्य साधना का हमें रसास्वादन करना है, यही इस साधक के प्रति सच्ची व अनूठी श्रद्धांजलि होगी। साहित्य जगत् के इस उपकारी साहित्य साधक का साहित्य प्रेमी बुद्धि में उच्चासन प्रदान करें, यही कृतज्ञता होगी। ___"कृतमुपकारम् न विस्मरन्ति साधवा" अर्थात वर्तमान विद्वान् महाकवि आचार्य ज्ञानसागर द्वारा साहित्य जगत् पर | किये गये उपकार को न भूलें, यही मेरी भावना है । ॥ इति शुभम् ॥
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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