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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन २०५ चित्रण किया है । साथ ही सुलोचना सौन्दर्य की तरह बुद्धिदेवी के सौन्दर्य का वर्णन भी महाकवि ने किया है । बुद्धिदेवी राजा अकम्पन के लिए चिन्ताहरण देवी बन कर आती है। राजा अकम्पन इस बात से चिन्तित हैं कि सुलोचना को स्वयंवर में आये राजकुमारों के गुणों का समुचित रूप से परिचय कौन करा सकेगा ? बुद्धिदेवी आते ही इस कार्य का उत्तरदायित्व लेकर राजा को आश्वस्त कर देती है । ' बुद्धिदेवी नारी सुलभ वात्सल्य से ओतप्रोत है । जब सुलोचना स्वयंवर मण्डप में आकर अगणित राजकुमारों को देखती है तो उनमें से किसी एक का सम्मान तथा शेष का निरादर होने के भय से चिन्तित हो जाती है । उस समय बुद्धिदेवी सुलोचना को बड़े स्नेह से अनेक युक्तियों एवं दृष्टान्तों से समझाकर चिन्तामुक्त करती है । स्वयंवरसभा में राजपरिचय देते समय बुद्धिदेवी की प्रगल्भता दर्शनीय है । वह सुलोचना को आगन्तुक राजकुमारों का परिचय आलंकारिक भाषा में कराती है। वह सुलोचना के हाव-भावों के द्वारा उसकी रुचि अरुचि को ताड़ लेती है और उसी के अनुसार राजाओं का परिचय विस्तार या संक्षेप में देती है। जब वह सुलोचना को जयकुमार के प्रति अनुरक्त देखती है, तो उसके गुणों का वर्णन अत्यन्त विस्तार से करती है और अन्त में कहती है - यदि भो जयैषिणी त्वं दृक्शरविद्धं ततश्शिथिलमेनम् । अयि बालेऽस्मिन् काले स्रजा बघानाविलम्बेन || ६ / ११६ - हे बाले ! यदि तू जयकुमार के प्रति अनुरक्त है तो इसे शीघ्र ही माला के बन्धन से बाँध ले । क्योंकि यह तेरे कटाक्ष बाणों से घायल होने के कारण शिथिल हो रहा है । संक्षेप में बुद्धिदेवी हमारे सामने एक वात्सल्य से परिपूर्ण, हितैषिणी मार्गदर्शिका के रूप में आती है । ऋषभदेव ये प्रथम तीर्थंकर हैं । देवलोक एवं मध्यलोक के मध्य देवों द्वारा रचित समवशरण में दिव्य सिंहासन से चार अंगुल ऊपर स्थित हैं। जब आत्मकल्याण का इच्छुक जयकुमार तीर्थंकर देव की शरण में पहुँचता है, तो वे धर्मोपदेश द्वारा यथार्थ मार्ग प्रदर्शित करते हैं । जयकुमार उनके द्वारा दर्शाये मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करता है। १. जयोदय, सर्ग - ५ २. वही, सर्ग - ६
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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