SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .१९३ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन अनुप्रास , छेकानुप्रासरूप वर्णविन्यास से उत्पन्न नाद सौन्दर्य निम्न उदाहरणों में देखा जा सकता है कनभूमिरुपागता गता जनभूमिर्ननु जानता नता । फलितैः फलितैर्गताङ्गताऽप्युचितेन प्रभुणा सता सता ॥ १३/४२ सुन्दरि कलिङ्गलानां कलिङ्गलानां शिरःश्रिया श्रयतात् । पीवरपयोपरद्वयरमेण येन स्थितोदयता ॥ ६/२२ xxx चतुराणां चतुराणामतुच्छतुष्टिं नयनयन्तु सभाम् । .. तनुतेऽनुतेजसा स्वां कलिङ्गराजाभियां सुलभाम् ॥ ६/२३ x .. . x x मनसि मनसिजमिताया वनिताया विरहदग्धहृदयायाः । तल्लिङ्गानि तदानीं स्फुलिङ्गानीति . निरगच्छन् ॥ १६/६५ अधोलिखित उक्ति में नियोजित वर्ण नगाड़े की ध्वनि का बिम्ब उपस्थित कर देते "उपांशुपांसुले व्योम्नि ढकाटकारपूरिते।". ३/१११ (पूर्वार्ध) वृत्त्यनुप्रास के द्वारा निम्न पद्य में सोमरसपानजनित मत्तदशा के द्योतन की अद्भुत सामर्थ्य आ गई है । वर्गों के बहुशः आवर्तन से जिह्वा का लड़खड़ाना सूचित होता है, जो मत्तदशा का लक्षण है - ततत्यजेदं भभभाजनन्तु दुद्भुतं ते मुमुखासवन्तु । बवा ददेदेहि पिपिप्रियेति मदोक्तिरेषाऽति मुदे निरेति ॥ १६/५० अधोलिखित पद्य में "न" वर्ण की आवृत्ति से हस्तिनापुर नरेश जयकुमार की सभा का सर्वथा दोषरहितत्व प्रकाशित होता है - न वर्णलोपः प्रकृतेर्न भङ्गः कुतोऽपि न प्रत्ययवत्प्रसङ्गः । यत्र स्वतो वा गुणवृद्धिसिद्धिः प्राप्ता यदीपापदुरीतिकतिम् ॥ १/३१ वृत्त्यनुप्रास के द्वारा कहीं कहीं केवल श्रुतिमाधुर्य की ही सृष्टि की गई है -
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy