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________________ १९० जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन "मुझ जैसा दुष्ट, दुरात्मा, दुराचारी मनुष्य उसके योग्य न था।" (सेवासदन, १५८) "जाति का द्रोही, दुश्मन, दंभी, दगाबाज और इससे भी कठोर शब्दों में उसकी चर्चा हुई।" (रंगभूमि, ५३६) इनमें बलात्मक प्रभाव को निष्पन्न करने के लिए "द" का घोषत्व जो योगदान करता है, वह ध्यान देने योग्य है । घोष ध्वनियों की गूंज प्रभाव को द्विगुणित करने की सामर्थ्य रखती है। .. तीखेपन की अभिव्यंजना के लिए अनुप्रास का शक्तिशाली प्रयोग इन उदाहरणों में दिखाई देगा : . "फिर पुत्री की पैनी पीक भी कानों को चुभी ।" (गोदान, ४६) . "अभी जरा देर पहले धनिया ने क्रोध के आवेश में झुनिया को कुलटा, कलंकिनी, और कलमुँही न जाने क्या क्या कह डाला था ।" (गोदान, १२६) . "प" और "क" का स्पर्शत्व इस तीखेपन को पुष्ट रूप से अभिव्यक्त करने में सहायक प्रतीत होता है । यह स्पर्शत्व आवृत्तिचक्र में पड़कर किस प्रकार कोमल से तीक्ष्ण हो गया है, यह द्रष्टव्य है। कोमलता का गुण अन्य ध्वनियों में भी है जो अपनी कोमलता से भावात्मकता की निष्पत्ति करने में सफल हुई है : - "सिलिया, सांवली, सलोनी छरहरी बालिका थी।" (गोदान, २५१) . - "नैना समतल, सुलभ और समीप" (कर्मभूमि, ४७).. "स" के अनुप्रास से नैना की कोमलता हमारे इतने निकट आ जाती है कि हम मानो उसे छू सकते हैं और उसी "स" का अनुप्रास सिलिया की सूरत की चिकनाई से मानों हमारी आँखों को आंज देता है। भावात्मक और बलात्मक प्रभाव की निष्पत्ति में अनुप्रास के योगदान का प्रमाण इस वाक्य में मिलता है : - मेरे लिए तुमने अब तक त्याग ही त्याग किये हैं, सम्मान, समृद्धि, सिद्धान्त एक की भी परवाह नहीं की । (रंगभूमि, २८८) १. शैलीविज्ञान और प्रेमचन्द की भाषा, पृष्ठ २५-२६
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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