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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन ११५ यहाँ "ज्यों गथ हारे थकित जुआरी" यह बिम्ब धर्मसाम्य पर आधारित है और "ज्यों नलिनी हिमकर की मारी" यह रूपसाम्य । पर प्रथम में थकित मनःस्थिति का चित्रण : है, द्वितीय में मलिन रूप का । दोनों ही चित्र सूर की राधा को दृश्य बना देते हैं।' "सुख, दुःख, क्रोध, हास्य सब अमूर्तभाव हैं जो काव्य में बिम्ब द्वारा रूपायित होते हैं । अमूर्त आनन्द और रुदन को रूपायित करने का जायसी का एक प्रयत्न दृष्टव्य कहा हंससि तूं मोसौं किये और सौं नेहु । तोहि मुख चमकै बीजुरी मोहि मुख बरिसै मेहु ॥ - तू अन्य स्त्री से प्रीति करके मुझसे हंसी क्यों करता है ? तेरे मुख पर तो बिजली चमकती है और मेरे मुख पर मेह बरस रहा है । यहाँ प्रसन्नता की. व्यंजना करने में बिजली चमकने का बिम्ब बड़ा समर्थ बन पड़ा है तथा क्षोभ, अमर्ष एवं दुःख से रुदन करने की व्यंजना के लिये मेघ बरसने का बिम्ब बड़ा सार्थक है । दोनों ही बिम्ब अमूर्त भावों को मूर्तता प्रदान करने वाले हैं। ___ काव्य में भाव की अमूर्तता को शब्दों के द्वारा मूर्तित किया जाता है । शब्दों के द्वारा मूर्तित किये गये भाव ही बिम्ब हैं । इसी रूप में भाव संवेदनीय (अनुभूतिगम्य) बन कर रससृष्टि करने में समर्थ हो सकता है । बिम्ब भाव की अमूर्तता को दृश्य वर्णनों द्वारा मूर्त बनाकर प्रस्तुत करता है । भाव की प्रतीति उसका नाम लेकर नहीं करायी जा सकती, जैसे किसी फल के स्वरूप और स्वाद का अनुभव उसके नाम का कथन कर नहीं कराया जा सकता । वस्तुतः भाव को काव्य में यदि किसी माध्यम से प्रकट किया जाता है तो वह व्यंजना ही है और व्यंजना बिम्ब के रूप में ही हो सकती है । उदाहरण के लिए रतिभाव को लीजिये । भावरूप में वह हृदय की एक विशिष्ट अनुभूति अथवा विशिष्ट अवस्था है जो काव्य में केवल शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत नहीं की जा सकती । कवि उसको विभाव, अनुभाव आदि के वर्णन द्वारा व्यंजित करते हैं । रतिभाव की व्यंजना बिहारी ने इस प्रकार की है - कहत नटत रीझत खिन्नत, मिलत खिलत लजियात । भरे भौन में करत हैं, नैनन ही सौं बात ॥ १. जायसी की विम्ब योजना, पृष्ठ ५५-५६ २. जायसी की विम्व योजना, पृष्ठ ६६ ।।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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