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________________ ११२ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन बिम्ब का प्रमुख लक्षण है ऐन्द्रियता अर्थात् इन्द्रियग्राह्य विषयों से सम्बद्ध होना । इस आधार पर बिम्ब पाँच वर्गों में विभक्त होते हैं : चाक्षुष (चक्षुग्राह्य पदार्थ का बिम्ब), श्रव्य (श्रोत्रग्राह्य पदार्थ का बिम्ब, ) स्वाद्य (जिह्वाग्राह्य पदार्थ का विम्ब), घ्राण्य (नासिकाग्राह्य पदार्थ का बिम्ब) तथा स्पर्य (स्पर्शग्राह्य पदार्थ का बिम्ब)। बिम्ब निर्माण की रीति जब अमूर्त पदार्थ की अभिव्यक्ति मूर्त पदार्थ अथवा उसके इन्द्रियग्राह्य रूप, गुण और क्रिया के सादृश्य, आरोप या प्रतीकात्मक प्रयोग द्वारा की जाती है तब बिम्ब की रचना होती है । जब मनोभावों को शारीरिक लक्षणों एवं बाह्य प्रवृत्तियों द्वारा व्यंजित किया जाता है तब भी बिम्बसृजन होता है । मूर्त पदार्थों के रूप, गुण और क्रियाओं के वर्णन से भी भाषा में बिम्बात्मकता आती है । सार गह कि उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, ससन्देह, भ्रान्तिमान्, दृष्टान्त, निदर्शना आदि अलंकारों, प्रतीकों, मुहावरों, लोकोक्तियों, लाक्षणिक प्रयोगों, विभाव, अनुभाव और व्यंजित व्यभिचारी भावों तथा मूर्त पदार्थों के इन्द्रिय ग्राह्य स्वरूप के वर्णन से बिम्ब निर्माण होता है। बिम्ब का उपस्थापन कहीं सम्पूर्ण वाक्य (वाक्य के सभी अवयव) बिम्ब का उपस्थापन करता है, कहीं केवल संज्ञा या कोई विशेषण या मात्र कोई क्रिया ही बिम्ब को उपस्थित करने में समर्थ होती है । इन्हें वाक्य बिम्ब, संज्ञा बिम्ब, विशेषण बिम्ब और क्रिया बिम्ब कहा जाता है । बिम्ब विधान का अभिव्यंजनागत महत्व बिम्ब अमूर्तभावों के विशिष्ट स्वरूप को यथावत् सम्प्रेषित करने, उनकी प्रत्यक्षवत् अनुभूति एवं आस्वादन कराने तथा सहृदय के हृदय को विभिन्न भावों, विचारों एवं सुख-दुःखात्मक अनुभूतियों में डुबा देने के अमोघ साधन हैं। इसलिए आधुनिक काव्यमर्मज्ञों ने बिम्बविधान को काव्यशिल्प का अत्यन्त महत्वपूर्ण तत्त्व माना है। अंग्रेजी विश्वकोश में कविता की परिभाषा देते हुए डंटन ने कहा है - "कविता मानव हृदय की चित्रमयी और कलात्मक अभिव्यक्ति है, जो भावनात्मक एवं लयपूर्ण भाषा में प्रकट होती है। - 1. Absolute Poetry is the concrete and artistic expression of the human mind in the emotional and rhythmical language : T.W. Duntton, Ency. brit, Vol.18, Page 106
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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