SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - . - चौधरी जी ने क्षेत्र की योजनाओं को देखते हुए लगभग 200 बीघा जमीन और सरकार से दिलाने की घोषणा की जिलाधीश द्वारा प्रशासनिक समस्त कार्यों को करने की घोषणा की । गौशाला में जिला प्रमुख धर्म निष्ठ श्री पुखराज पहाड़िया एवं प्रशासन का विशेष सहयोग देने की घोषणा की गई है । गृह एवं खान मंत्री जी श्री कैलाश मेघवाल ने पुलिस चौकी की घोषणा की । इस प्रकार राज नेताओं द्वारा इस नवोदित तीर्थ क्षेत्र के विकास में हुई घोषणाएं क्रियान्वित होने की प्रतिक्षा कर रही है, माननीय मुख्यमंत्री श्री भैरुसिंहजी शेखावत ने गौशाला को विशेष सुविधायुक्त बनाने के लिए आयुक्त श्रीमति अदिति मेहता को विशेष निर्देष दिये । 18. विशेष सहयोग - पहाडी आवंटित होने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी कि पहाड़ी को समतल कैसे किया जाये । लेकिन यह कार्य धर्म निष्ठ आर.के.मार्बल्स लि. किशनगढ़ वालों ने अपनी मशीन द्वारा पहाड़ी तक का कच्चा मार्ग एवं पहाडी का समतली करण लगभग डेढ़ माह के अन्दर करके क्षेत्र एवं सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा व्यक्त कर असम्भव कार्य को सम्भव कर दिखाया है । पाषाण-टंकोतकीर्ण वास्तु कला – पाषाण टंकोत-कीर्ण वास्तुकला विशेष रूप से प्रायः लुप्त सी हो चुकी थी-लेकिन तीर्थ क्षेत्र जीर्णोद्धारक एवं वास्तुकला के मर्मज्ञ दिगम्बर जैन मुनि श्री सुधासागरजी महाराज की दूर दृष्टि ने उस खोई हुई कला को खोज निकाला, तथा उस जीर्णशीर्ण वास्तुकला का जीर्णोद्धार कर इस संस्कृति को चिर स्थाई बनाने के लिए उपदेश दिया । मुनिराज ने अपने उपदेशों में सद् प्रेरणा दी कि आर.सी.सी. (R.C.C.) के मंदिर बनाने से संएकृति दीर्घकाल तक सुरक्षित नहीं रह सकेगी क्योंकि आर.सी.सी. की उम्र मात्र 100 वर्षों की है । मंदिरों का निर्माण सहस्रों वर्षों को ध्यान में रख कर करना चाहिए । दूसरी बात यह है कि जैन प्रतिष्ठा पाठों में लोहे के प्रयोग को प्रशस्त नहीं कहा है । गुरु का यह उपदेश समाज के हृदयों को छू गया तथा पत्थर-चूना के मंदिर बनाने वाले शिल्पियों को खोजा गया। "जिन खोजा तिन पाईया गहरे पानी पेठ-वाली कहावत चरितार्थ हुई परिणाम स्वरुप शिल्पि उपलब्ध हो गये समाज एवं समिति ने मुनि श्री सुधासागरजी महाराज के चरणों में श्री फल चढ़ाकर संकल्प किया कि इस ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र पर (पहाड़ी पर) जितने भी मंदिर बनेंगे वह सभी खजुराहो, देलवाड़ा, देवगढ़, रणकपुर के समान कलापूर्ण पत्थर के ही बनेंगे । उनमें लोहे का । प्रयोग नहीं किया जावेगा अर्थात वह आर.सी.सी. के नहीं बनेंगे ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy