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________________ १०८ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन (११) जयकुमार द्वारा सुलोचना के रूप सौन्दर्य का वर्णन, (१२) पाणिग्रहण संस्कार पूर्ण होना, (१३) जयकुमार का वधू सहित गंगा नदी के तट पर पहुँचना, (१४) जयकुमार का जलक्रीड़ा वर्णन, (१५) रात्रि आगमन का वर्णन, (१६) सोमरसपानगोष्ठी का वर्णन, (१७) रात्रिक्रीड़ा वर्णन, (१८) प्रातः कालीन शोभा का वर्णन, (१९) जयकुमार का प्रातः कालीन सन्ध्यावन्दन, (२०) जयकुमार द्वारा भरत चक्रवर्ती की वन्दना करना, (२१) जयकुमार का हस्तिनापुर पहुँचना, (२२) जयकुमार - सुलोचना का भोगविलास वर्णन, (२३) पूर्वजन्म का स्मरण एवं दिव्यविभूति की प्राप्ति का वर्णन, (२४) जयकुमार सुलोचना का तीर्थयात्रा करना, (२५) जयकुमार की वैराग्य - भावना का वर्णन, (२६) जयकुमार का परिग्रह त्यागकर वन प्रस्थान करना, (२७) ऋषभदेव द्वारा जयकुमार को उपदेश प्राप्त होना, एवं (२८) जयकुमार का मोक्ष प्राप्त करना । - चक्रबन्ध चित्रालंकार का सचित्र निदर्शन इस प्रकार है जन्म श्रीगुणसाधनं स्वयमवन् संदुःखदैन्याद् बहिर्यनेनैव विभुप्रसिद्धयशसे पापापकृत् सत्त्वपः । मञ्जूपासकसङ्गतं नियमनं शास्ति स्म पृथ्वीभृते, तेजःपुञ्जमयो यथागममथा हिंसाधिपः श्रीमते । १ / ११३
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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