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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन सुन्दरि ! इस राजकुमार के रूप को देखो, जो देखने में बड़ा ही मनोहर है और सबसे अग्रगण्य है । दूसरे राजकुमारों का लावण्य तो इसके सामने लावण्य ( खारापन) ही ६२ यहाँ द्वितीय " लावण्य" पद अपने प्रसिद्ध अर्थ "मलोनेपन" का बोध न कराकर व्युत्पत्यर्थ "खारेपन" की प्रतीति कराता है, अतः इसके प्रयोग में सद्विवैचित्र्यवक्रता है I ऐसे प्रयोग का प्रयोजन हैं प्रस्तुत राजकुमार में लोकोत्तर मौन्दर्य की प्रतीति कराना । पर्यायवक्रता जहाँ अनेक शब्दों के द्वारा अर्थ का कथन सम्भव हो, वहाँ ऐसे पर्यायवाची का प्रयोग करना जो अपने व्यंग्यार्थ द्वारा अर्थ को पुष्ट करे या उसे युक्तिसंगत बनाये पर्यायवक्रता कहलाता है ।' यह शब्द शक्तिमूलक अनुरणनरूप पदध्वनि का आधार है। इसका उदाहरण जयोदय के निम्न लोकों में देखा जा सकता है। - (क) भूपालदाल कित्रो ते मुदुपल्लवशालिनः । राकान्तालसन्निधानस्य फलतात् सुमनस्कता ॥ १/११२ हे राजकुमार ! तुम मृदुभाषी हो और तुम्हारा गृह स्त्री से सुशोभित है। तुम्हारा सौमनस्य क्या सफल नहीं होगा ? यहाँ घर की शोभा बढ़ाने का प्रसंग होने से स्त्री के अनेक पर्यायवाचियों में में "कान्ता" शब्द ही औचित्यपूर्ण है, क्योंकि इससे जो कान्तता या मनोहरता का अर्थ व्यंजित होता है, उससे घर के सुशोभित होने की मंगति बैठ जाती है। यदि "कान्ता" के स्थान में "अबला " आदि कोई पर्यायवाची रखा जाता तो सन्दर्भ के प्रतिकूल होता । "अबलादि" शब्दों से "कान्तत्व" की व्यंजना नहीं होती । (ख) धन्याः परिग्रहाद्यूयं विरक्ताः परितोग्रहात् । 9. नित्यमत्रावसीदन्ति मादृशा अवलाकुलाः || १/१०७ वक्रोक्तिजीवित, २/८९ अभिधेयान्तरतमस्तस्यातिशयपोषकः । रम्यच्छायान्तरस्पर्शात्तदलंकर्तुमीश्वरः ।। स्वयंविशेषणेनापि स्वच्छायोत्कर्षपेशलः । असंभाव्यर्थपात्रत्वगर्भं यश्चाविधीयते ॥ अलंकारोपसंस्कारमनोहारिनिबन्धनः । पर्यायस्तेन वैचित्र्यं परा पर्यायवक्रता ।। वक्रोक्तिजीवित २/१०-१२ "एष एव च शब्दशक्तिमूलानुरणनरूपव्यंग्यस्य पदध्वनेर्विषय: बहुषु चैवंविधेषु सत्सु वाक्यध्वनेर्ता | • वक्रोक्तिजीवित २/१०-१२, पृष्ठ २०९ २.
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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