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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन इस प्रकार शब्द का व्यंजकत्व दो प्रकार का होता है- अभिधाश्रित और लक्षणाश्रित। जहाँ शब्द का अभिधार्थ और लक्ष्यार्थ अभिप्रेत नहीं होता, व्यंग्यार्थ ही अभिप्रेत होता है, वहां "ध्वनि" संज्ञा होती है । ' ६० व्यंजकता का हेतु उक्ति की वक्रता शब्द को व्यंजक बनाने वाला तत्व है उक्ति की वक्रता या प्रयोग वैचित्र्य । प्रसिद्ध काव्यशास्त्री कुन्तक ने वक्रता के निम्नलिखित भेद बतलाये हैं :-- १- वर्णविन्यासवक्रता २- पदपूर्वार्धवक्रता (क) रूढ़िवैचित्र्यवक्रता (ख) पर्यायवक्रता (ग) उपचारवक्रता (घ) विशेषणवक्रता (ङ) संवृतिवक्रता (च) पदमध्यान्तर्भूतप्रत्ययवक्रता (छ) वृत्तिवैचित्र्यवक्रता (ज) भाववैचित्र्यवक्रता (झ) लिंगवैचित्र्यवक्रता (ञ) क्रियावैचित्र्यवक्रता ३- पदपरार्धवक्रता (क) कालवैचित्र्यवक्रता कारकवक्रता (ग) संख्यावक्रता (घ) पुरुषवक्रता (ङ) उपग्रहवक्रता (च) प्रत्ययान्तरक्कता (छ) उपसर्गवक्रता १. यत्रार्थः शब्दो वा तमर्थमुपसर्जनीकृतस्वार्थी । व्यङ्क्तः काव्यविशेषः स ध्वनिरिति सूरिभिः कथितः ॥ ध्वन्यालोक, १ / १३
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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