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________________ 335 समाधिमरण ग्रहण करने वाले जिन 15व्यक्तियों के दृष्टांत दिये गये हैं उनमें से 9 दृष्टांत मरणविभक्ति में और प्रायः सभी दृष्टांत भगवती आराधना में उपलब्ध होते हैं। यहाँ यह भी स्मरणीय है कि मरणविभक्ति में इनके अतिरिक्त भी ऐसे ही कुछ और व्यक्तियों के दृष्टांत हमें मिलते हैं। जिनमें जिनधर्म श्रेष्ठी, मेतार्य, सागरचन्द्र, चन्द्रवतंसक नृप, दमदान्त महर्षि, धन्य शालिभद्र, पाँच पाण्डव, इलापुत्र और अर्हन्नक के दृष्टांत महत्वपूर्ण हैं।' संस्तारक, मरणविभक्ति और भगवती आराधना-इन तीनों ग्रंथों में उपलब्ध दृष्टांतों पर विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि सर्वप्रथम ये दृष्टांत मरणविभक्ति में ही दिये गये होंगे क्योंकि ये दृष्टांत श्वेताम्बर परंपरा द्वारा मान्य आगमिक व्याख्या साहित्य में भी उपलब्ध होते हैं। चूंकि मरणविभक्ति का उल्लेख नन्दीसूत्र और पाक्षिक सूत्र में मिलता है, अतः यह मानना होगा कि मरणविभक्ति नंदीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र की रचना के पूर्व अर्थात् ईस्वी सन् की पाँचवीं-छठीं शताबी पूर्व की रचना है। यह संभव है कि कुछ नियुक्तियाँ जिनमें संस्तारक प्रकीर्णक के समरूप दृष्टांत उपलब्ध होते हैं वो मरण विभक्ति के पूर्व की हों, किन्तु इतना निश्चित है कि जीतकल्पभाष्य, वृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, आवश्यकचूर्णी, निशीथचूर्णी, उत्तराध्ययनचूर्णी, नन्दीचूर्णी आदि ग्रंथ जिनमें ये दृष्टांत उपलब्ध होते हैं, निश्चय ही छठी-सातवीं शताब्दी के हैं। इस प्रकार इन कथाओं/दृष्टांतों का स्त्रोत तो निश्चित ही पूर्ववर्ती है। एक-दो दृष्टांतों, जैसे- कार्तिकार्य, धर्मसिंह और अभयघोष को छोड़कर शेष सभी दृष्टांत नियुक्ति, भाष्यअथवा चूर्णी साहित्य में हमें उपलब्ध हो जाते हैं। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि संस्तारक प्रकीर्णक में उपलब्ध कथाए / दृष्टांत उनमें श्वेताम्बर आगमिक व्याख्या साहित्य अथवा मरणविभक्ति से ही ग्रहीत हैं। यद्यपि अर्निकापुत्र, कार्तिकार्य, धर्मसिंह, अभयघोष और ऋषभसेन की कथाएँ हमें मरणविभक्ति में उपलब्ध नहीं हुई हैं, किन्तु इनमें से अर्निकापुत्र, अभय घोष और ऋषभसेन की कथाएँ तो भगवती आराधना में इन्हीं नामों से उपलब्ध होती हैं तथा कार्तिकार्य का नामोल्लेख वहाँ अग्निराजा के पुत्र रूप में हुआ है और धर्मसिंह का कथानक वहाँ धर्मघोष के नाम से मिलता है। अतः इस संभावना को भी हम पूरी तरह निरस्त नहीं कर सकते कि संस्तरक के लेखक के समक्ष भगवती आराधनाभी रही हो। 1. 2. मरणविभक्तिपइण्णयं- पइण्णयसुत्ताई, भाग 1, गाथा 426-485 (क) नन्दीसूत्र, सूत्र 73,79-81 (ख) पाक्षिक सूत्र, पृष्ठ 76
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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