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________________ 20 चन्द्र और सूर्य के विषय में इसमें विस्तार से चर्चा पाई जाती है । उनको गति के बारे में कहा गया है कि सूर्य चन्द्रमा से, ग्रह सूर्य से, नक्षत्र ग्रहों से और तारे नक्षत्रों से तेज गति करने वाले होते हैं। (गाथा 94 से 96 ) यहीं पर शतभिएज, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा ये छः नक्षत्र कहे गये हैं, जो पन्द्र मुहूर्त संयोग वाले कहे गये हैं। तीन उत्तरा नक्षत्र और पुर्नवसु, रोहिणी और विशाखा - ये छः नक्षत्र चन्द्रमा के साथ पैतालिस मुहूर्त का संयोग करते हैं। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों के चन्द्रसूर्य संयोगों का उल्लेख हुआ है (गाथा 97 से 107 ) । सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिषिक देवों की संख्या को निम्न सारिणी से आसान से समझा जा सकता है (गाथा 108 से 129 ) चन्द्र सूर्य नक्षत्र जम्बूद्वीप 2 2 लवणसमुद्र 4 धातकीखण्ड 12 12 कालोदधि समुद्र 42 42 56 112 336 1176 133950 267900 803700 2812950 पुष्कर द्वीप 144 144 9644400 अर्द्धपुष्कर द्वीप 72 72 482200 मनुष्यलोक 132 112 3696 11616 8840700 इसके बाद ज्योतिषिकों के पिटक, पंक्तियाँ, मंडल, उनका ताप क्षेत्र, उनकी गति आदि का वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् बताया गया है कि चंद्रमा की हानि और वृद्धि किस प्रकार होती है, यहाँ कहा गया है कि शुक्ल पक्ष के पंद्रह दिनों में चंद्रमा का बांसठवां- बांसठवां भाग राहु से अनावृत्त होकर घटता प्रतिदिन बढ़ता है और कृष्णपक्ष के उतने ही समय में राहु से अनावृत्त होकर घटता जाता है, इस प्रकार चंद्रमा वृद्धि को प्राप्त होता है और इसी प्रकार चंद्रमा का ह्रास होता है। 4022 ग्रह 2016 176 352 1056 3696 12672 तारा (क्रोडा कोडी में) 6336
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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