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________________ 30 1 अभिमत नहीं दिया है । वे लिखते हैं- “इस शाखा का नामकरण किसी नगर के आधार पर ही हुआ होगा, किन्तु इसकी पहचान अपेक्षाकृत कठिन है, क्योंकि बहुत सारे ऐसे ग्राम और शहर हैं, जिनके अंत में 'नगर' नाम पाया जाता है । वे आगे भी लिखते हैं कि कनिंघम का विश्वास है कि यह ऊँचानगर से संबंधित होगा ।" चूंकि कनिंघम ने आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के 14वें खण्ड में बुलन्दशहर का समीकरण ऊँचानगर से किया था, इसी आधार पर मुनि कल्याणविजयजी ने यह लिख दिया है कि “ऊँचा नगरी शाखा प्राचीन ऊँचानगरी से प्रसिद्ध हुई थी । ऊँचा नगरी को आजकल बुलन्दशहर कहते हैं ।" इस संबंध में पं. सुखलालजी का कथन है- 'उच्चैर्नागर' शाखा का प्राकृत नाम ‘उच्चानगर' मिलता है । यह शाखा किसी ग्राम या शहर के नाम पर प्रसिद्ध हुई होगी, यह तो प्रतीत होता है, परंतु यह ग्राम कौनसा था, यह निश्चित करना कठिन है । भारत के अनेक भागों में 'नगर' नाम से या अंत में 'नगर' शब्दवाले अनेक शहर तथा ग्राम है । 'बड़नगर' गुजरात का पुराना तथा प्रसिद्ध नगर है। बड़ का अर्थ मोटा (विशाल) और मोटा का अर्थ कदाचित् ऊँचा भी होता है, लेकिन गुजरात में बड़नगर नाम भी पूर्वदेश के उस अथवा उस जैसे नाम के शहर से लिया गया होगा, ऐसी भी विद्वानों की कल्पना है। इससे उच्चनागर शाखा का बड़नगर के साथ ही संबंध है, यह जोर देकर नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त जब उच्चनागर शाखा उत्पन्न हुई, उस काल में बड़नगर था या नहीं, यह भी विचारणीय है । उच्चनागर शाखा के उद्भव के समय जैनाचार्यों का मुख्य विहार गंगा-यमुना की तरफ होने के प्रमाण मिलते हैं । अतः, बड़नगर के साथ उच्चनागर शाखा के संबंध की कल्पना सबल नहीं रहती । "" इस विषय में कनिंघम का कहना है "यह भौगोलिक नाम उत्तर-पश्चिम प्रांत के आधुनिक बुलन्दशहर के अंतर्गत 'उच्चनगर' नाम के किले के साथ मेल खाता है, किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि 'ऊँचानगर शाखा का संबंध बुलन्दशहर तभी जोड़ा जा सकता है, जब उसका अस्तित्व ई. पू. प्रथम शताब्दी के लगभग रहा हो या कम से कम उस काल में ऊँचा नगर कहलाता भी हो। इस नगर के प्राचीन 'बरण ' नाम का उल्लेख तो है, किन्तु यह भी 9 - 10वीं शताब्दी से पूर्व का ज्ञात नहीं होता । बारण (बरण) नाम से कब इसका नाम बुलन्दशहर हुआ, इसके संबंध में किसी नतीजे पर पहुँचने में उन्होंने अपनी असमर्थता व्यक्त की है। यह हिन्दुओं द्वारा ऊँचागाँव या ऊँचा नगर कहा जाता था- मुझे तो यह भी उनकी कल्पना - सी प्रतीत होती है। इस संबंध में वे कोई भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। 'बरन' नाम का उल्लेख भी मुस्लिम
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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