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________________ 17 संघियनं अरहतनिसीदिया समीपे पाभारे बराकार समुथापिताहि अनेकयोजना हिताहि .... सिलाहि.... 16. .. चतरे च वेड्डरिय गभे थंमे पतिठापयति पानतरीय सत सहसेहि (1) ममु(खि)य कल वोछिनं च चोय(ठि) अंग संतिक ( ) तुरियं उपादयति (1) खेम राजा स वढ़ राजा स भिखु राजा धम राजा पसं (तो) सुनं (तो) अनुभव (तो) कलानानि ..... गुण विसेस कुसलो सव पासंड पूजको सव दे (वाय) तन सकार कारको अपतिहत चक वाहनवलो चकधरो गुतचको पवतचको राजसिवसू कुल विनिश्रितो महाविजयो राजा खारवेलसिरि (11) इस सम्पूर्ण अभिलेख में कहीं भी पद के प्रारम्भ में 'ण' और अन्त में 'न्' नहीं है। इसके विपरीत, पद के प्रारम्भ में 'न्' एवं अन्त में 'न्' या 'ण' वर्ण के अनेक उदाहरण हैं, जिसे वे अर्धमागधी की विशेषता स्वीकार करते हैं, यथा____ नमो अरहंतानं, नमो सवसिधानं, महाराजेन लखनेन कलिगाधिपतिना, खारवेलेन, नववसाति, नगर, नत, वधमान, नंदराज, यवन, सातकंनि, निवेसितं, नयति, रतनानिनिसीदिया, चिनवतानि, वास (स) तानि, खारवेल सिरिना सुविहतांब दिसानं आदि। अब अंत में 'ण' के कुछ प्रयोग देखिए- ऐरण, संपुणं, गहणं (गोपुराणि, सिहराणि) समण, गुण कन्हवेणा आदि। कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जहां मध्यवर्ती 'ण' और अन्त में 'न्' है। जैसे ब्रह्माणान, लखणेन आदि। इन सब उदाहरणों से तो डॉ. सुदीपजी के अनुसार भी यह अर्धमागधी या अर्धमागधी प्रभावित ही सिद्ध होती है। पुनः इसमें दन्त्य 'स्' कार, 'क्' वर्ण का 'ग्' आदेश तथा 'थ्' के स्थान पर 'ध्' का प्रयोग रूप जो विशेषताएँ हैं वह तो अर्धमागधी और महाराष्ट्री प्राकृत में भी मिलती हैं। शौरसेनी के दो विशिष्ट लक्षण- 'न्' का सर्वत्र ‘ण्' और मध्यवर्ती असंयुक्त 'त्' का 'द्' तो इसमें कहीं पाये ही नहीं जाते हैं। इसी प्रकार, इसमें वर्धमान का वधमान रूप ही मिलता है न कि शौरसेनी का वड्डमाण। इस प्रकार, इसके शौरसेनी से प्रभावित होने का कोई भी ठोस प्रमाण नहीं है, इसके विपरीत यह मागधी या अर्धमागधी से प्रभावित है, इसके अनेकों अन्तःसाक्ष्य स्वयं इसी अभिलेख में हैं। पुनः, कलिंग मगध के निकट है शूरसेन से तो बहुत दूर है, अतः वहाँ की भाषा मागधी या अर्धमागधी से तो प्रभावित हो सकती है, किन्तु शौरसेनी से नहीं। अतः, कलिंग के अभिलेख की भाषा को ओड्मागधी
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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