SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26 38. सूक्ष्मयोनीनि भूतानि तर्कगम्यानि कानिचित्। पक्ष्मणोऽपि निपातेन येषां स्यात् स्कन्धपर्ययः।। - महाभारत, शान्तिपर्व-15/25-26 अज्झत्थ विसोहीए जीवनिकाएहिं संथडे लोए। देसियमहिंसगंत्त जिणेहितिलोयदरिसीहिं।। - ओघ नियुक्ति, 747 समणोवागस्सणंभते। पुव्वमेव तस पाण समारम्भे पञ्चखाए भवई, पुडवीं समारम्भे ण पच्चखाए भवइ, से य पुढवि खणमाणे अण्णयरं तसपाणं विहिंसेज्जा सेणं भंते ते वयं अतिचरित? नो इणडे समढे नो खलु से तस अइवायाए आउटई। - भगवती-7/1 उच्चालियंमि पाए, ईरियासमियस्स संकमट्ठाए। वावजेज कुलिंगी, मरिज तं जोगमासज्ज। न य तस्स तन्निमित्तो, बंधो सुहमो वि देसिओ समए। अणावज्जो उ प ओगेण, सव्वभावेण सो जम्हा।। - ओघनियुक्ति 778-49 जा जयमाणस्स भवे, विराहणा सुत्तविहिसमग्गस्स। सा होई निजरफला, अज्झत्थविसोहिजुत्तस्स।। - ओघनियुक्ति 559 39. जे य पमत्तो पुरिसो, तस्स योग पडुच्च जे सत्ता। वावजंते नियमा, तेसिं सो हिंसओ होई।। जे वि न वावजंती, नियमा तेसिं पि हिंसओ सोउ। सावज्जो उ पओगेण, सव्वभावेण सो जम्हा।। - ओघनियुक्ति 752-53 न य हिंसामेत्तेणं, सावज्जेणावि हिंसओ होई। ओघनियुक्ति 758 मरदु व जियदु व जीवो, अयदाचारस्सणिच्छिदा हिंसा। पयदस्स नत्थि बंधो हिसामेत्तेण समिदस्स।।- प्रवचनसार 217 युक्ताचरण स्य सतो रागाद्यावशमन्तरेणाऽपि। ___ न हि भवति जातु हिंसा प्राणव्यपरोपणादेव।। -पुरुषार्थसिद्धयुपाय 45 सति पाणातिवाए अप्पमत्तो अवहगो भवति। एवं असति पाणातिवाए पम्मत्ताए वहगो भवति।।- निशीथचूर्णि 92 देखिए- दर्शन और चिंतन, खण्ड 2, पृष्ठ 414 45. यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते। हत्वापि स इमांल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते।। - गीता-18/17 46. मातरं पितरं हन्त्वा राजानो द्वे च खत्तिये। रटुं सानुचरं हन्त्वा अनिधो याति ब्राह्मणो।- धम्मपद 294 40. ***
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy