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________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः % 3D वाउ व्य प्पडिबद्धे, गयणं व निरासए पमुक्के य ॥ विहग व्च कुत्तियावण-संकासे सरमि णिग्गंथे ॥४०॥ गुत्तक्खे जह कुम्मा, भारंडनिदंसणाउ अपमत्ते ॥ सव्वं सहे जह रसा, एगंतपरोवयारयरे ॥ ४१ ॥ पाते चरणेहिं, महीयलं तालयंटदिटुंता ॥ विहरित्ता मुहदाई, वेरग्गणिही मुणी वंदे ॥४२॥ सिरिसिद्धचक्कसाहग-भव्वेहि दिणे य पंचमे विहिणा ॥ साहुपयप्पणिहाणं, कायव्वं पुण्णरंगेहिं ॥ ४३ ॥ जइ वि गुणा साहगं, जिणसमए भासिया असंखिज्जा॥ सगवीसइगुणझागं, तह वि विसिट्ठाउ लक्खाउ ॥४४॥ वत्थू दीसइ सामं, जह भाणुकराइतावसंतत्तं ॥ तवतावसोसियंगा, तह सामा साहुणो भणिया॥४५॥ एयणुसारा साम, धण्यं भक्खंति पंचमे दियहे ॥ सगवीसइगुणमाणा, काउस्सग्गाइ कायव्यं ॥४६॥ णिक्खेवचउक्केहि, पंचमपयभावणा मुणेयव्वा ॥ साहुत्ति जेसि णाम, साहू णामेण ते णेया ॥४७॥ पडिमाओ साहूणं, ठवणासाहू पहाणगुणहेऊ ॥ समावेयरभेया, बहुप्पयारणिया ठवणा ॥४८॥ अणुहवणीयं जेहिं, साहुसरूवं च जेहिमणुहूयं ॥ साहू ते दम्वेगं, तहप्पयारा विभावस्था ॥ ४९ ॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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