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________________ १५२ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः सिरिमायाबीयक्खर-मयरूविस्सरियदाणसुहलक्खे॥ जगमाइ ! धण्णमणुया, सइ पहाए सरंति मुया ॥७॥ वय वय मह हियजणणि ! मियक्रवरेहिं मए किवं किच्चा।। सक्केमि कव्वरयणं, काउं जेण प्पकालंमि ॥ ८ ॥ कुण साहज्जमणुदिणं, सुयसायरपारपत्तिकज्जमि ॥ ण विणा दिणयरकिरणे, कमलवियासो कया हुजा ॥९॥ तुज्झ नमो तुज्झ णमो, तुम पसाएण चरविहो संघो॥ सुयणाणजणसीलो, परबोहणपञ्चलो होइ ॥ १० ॥ णेगेऽवि गंथयारा, गंथाईए णवेअ तुह चरणे ॥ . साहंति सज्झसिद्धी, अणग्गलो ते प्पह वोऽत्त ॥११॥ गीयरइतियसवइणो, वंतरसामिस्स पट्टराणीए ॥ देवी सरस्सईए, विइयाइ अणेगणामाई ॥ १२ ॥ सुयदेविं पहुसमया, हिट्ठाइग मेव भारइं भासं ॥ णिच्चं सरस्सइं तह, थुणंतु मुहु सारयं वाणीं ॥१३॥ भत्तीइ पयाण तुहं, हंसोऽवि जए सुओ विवेइति ॥ तेसिं किं पुण जेहिं, तुम चरणा सुमरिआ हियए ॥१४॥ वामेयरपाणीहि, धरई वरपोम्मपुत्थियं समयं ।। इयरेहिं तह वीण, क्खमालियं सेयवासहरिं ॥ १५ ॥ वयई णियमुहकमला, पुण्णक्खरमालियं पणवपूयं ॥ संसुद्धबंभवइया, किरियाफलजोगवंचणया ॥१६॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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