SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः १४५ चउदसविज्जाकुसलो - पणसयसीसे य जो भणावेए ॥ वाइसहाए विइओ - वायविहाणे सुदवखमई ॥ ८ ॥ पण्णासवरिसमाणो - गिहिपरिआओ य जस्स परिकहिओ || जो मज्झिमपावाए - - समागओ जण्णकज्जङ्कं ॥ ९॥ वसाहे वरमासे - सियपत्रिकारसी पुव्वण्हे || महसेणवणुज्जाणे - दिवखा समओ सुहो जस्स || १०॥ णियवेयपयत्थाणं - सव्वण्णुविसिद्धवीरवयणेणं ॥ सांचा विणिच्छियत्थे - पव्वइओ सीसपरिवरिओ ॥ ११ ॥ जो छणिययं तवं कुणंतो वि रूवलद्धिबलो ॥ सज्झाणमंडियंग-तं गणहरगोयमं वंदे || १२ | अडवीसइलद्धिगयं- जुगप्पहाणं पहाणचउणाणि || गुणगणरयणणिहाणं- गणहर सिरिगोयमं वंदे ॥ १३ ॥ चउदससहसमुणीण - जो पढमो वारसंगहरमउडो ॥ कारुण्णपुण्णहियओ-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १४ ॥ जेणं दिष्णा दिक्खा - पयच्छए केवलं मुणिंदाणं ॥ अच्चन्भुयमाहप्पं-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १५ ॥ तीसं वासाइ कया - अणण्णभावेण जेण गुरुभती ॥ कणरुडं विण्णवरं तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १६ ॥ जस्स य जीवणचरियं - अणुकरणिज्जं मुणिंदसंवेणं ॥ पत्थाणज्झाणगयं-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १७ ॥ १०
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy