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________________ वर्ण्यम् आचार्य भिक्षु अपने सहयोगी संतों के साथ सत्पथ का प्रचार करने निकले । जनता मूढता और आग्रह से ग्रस्त थी । सत्य विचारों को सुनने-समझने के लिए वह तत्पर नहीं थी । आचार्य भिक्षु का मन यह देखकर व्यथित हो उठा कि लोग जिनप्ररूपित धर्म को सुनने के लिए भी तैयार नहीं है । आचार्य भिक्षु ने जिनेश्वर की स्तुति के बहाने उस समय के जैनधर्म की स्थिति को प्रगट किया और यह दृढ़ता के साथ कहा कि मैं सैकड़ों उपसर्गों को सहर्ष सहन कर सकता हूं, पर जिनवचनों से विपरीत आचरण को सहन नहीं कर सकता । सत्पथ के प्रचार में सफलता के आसार न दीखने पर वे अपने सहयोगी मुनियों के साथ तपोनुष्ठान में संलग्न हो गए । तब एक दिन मुनि स्थिरपालजी और मुनि फतेहचंदजी के कथन पर तपोनुष्ठान से विरत हो वे लोगों को प्रबोध देने में प्रवृत्त हुए । उनकी वाग्पटुता एवं सहज निर्मलता से जनता में आकर्षण बढ़ा और तेरापंथ के विचारों की सत्यता से जनमानस प्रभावित हुआ ।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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