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________________ श्रीमिलमहाकाव्यम् १३५. चिकीर्षया यस्य गिरं प्रकृत्या, सुधां स्वकीयां गृहीता समीक्य । शोकात् पयोधिः पतितो धरित्यामुमिप्रघोषैरिव रोक्दीति ॥ 'जिनकी वाणी को अमृतमय बनाने के लिए प्रकृति ने समुद्र का सारा अमृत ग्रहण कर लिया हो ऐसा प्रतीत होता है, इसीलिए पृथ्वी पर पड़ा हुआ समुद्र तरंगों के घोष से रो रहा है।' १३६. धन्यास्त एवाङ्गमृतः सपुण्याः, फलेपहिर्मय॑भवो हि तेषाम् । यैः पीयते तस्य वचोमृतं सज्ज्योत्स्नाप्रियोरिव शारदेन्दोः ॥ 'वे ही मनुष्य पुण्यवान एवं धन्य हैं, तथा उनका जीवन ही सफल है जो उन महामुनि के वचनामृत का पान करने के लिए वैसे ही लालायित रहते हैं जैसे शरद् ऋतु के चन्द्रमा का अमृतपान करने के लिए चकोर ।' १३७. दृश्यो न दृगभ्यामतिथिः श्रुताभ्यामस्माभिरीगन परः प्रनीतः। , ___ मन्त्रिन् ! विधानमहो विधायाऽध्यारोपि सत्सौधशिरोध्यनः किम् ॥ 'हे मंत्री महोदय ! ऐसा भाग्यवान् कोई दूसरा पुरुष हमने न तो आंखों से देखा है और न कानों से सुना है । विधाता ने ऐसे पुरुष का निर्माण कर मानो सत्सौध के शिखर पर ध्वजारोपण ही कर दिया हो।' १३८. रोमाञ्चिताङ्गः सचिवः प्रणीय, तेषां च वाचं निजकर्णपेयम् । . उत्कण्ठितोऽजायत तव्रतीन्, द्रष्टुं प्रसिद्धिप्रददेववत् सः॥ उन विचक्षण श्रावकों के रोमाञ्चित करने वाले वचनों का श्रवण कर मंत्री प्रमुदित हो उठे एवं उन महामुनि के दर्शन के लिए वैसे ही उत्सुक हो गये जैसे कोई भक्त अपने इष्टदेव के दर्शन लिए उत्कंठित हो जाता है। १३९. जात्या च सिङ्घी सचिवस्ततोऽभूद्, हृष्टो वसन्तादिव सन्निकुञ्जः। पुनस्तदानीं मनसाऽन्वयुङ्क्ते, सन्तो भवन्तः कतिसंख्यका वा ॥ सिंघी जाति के वे सचिव श्रावकों के वचनों से वैसे ही प्रफुल्लित हो उठे जैसे वसन्त से नन्दन निकुञ्ज । फिर उन्होंने उन श्रावकों से पूछा'आप के गुरु के साथ कितने सन्त हैं और आप श्रावकों की संख्या कितनी १४०. त्रयोदशश्रीमुनयो वयं च, त्रयोदशेति श्रुतपार्श्ववर्ती। कश्चित् विपश्चित् कविरेक उत्को, भावातिरेकात् कथयाञ्चकार ॥ 'हे मन्त्रि महोदय ! इस समय हमारे तेरह संत हैं एवं हम भी तेरह . ही हैं।' ऐसा सुनकर समीपवर्ती किसी एक विद्वान कवि ने भावातिरेक से एक दोहा कहा।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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