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________________ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो वर्षा ऋतु अभी-अभी भावदीक्षा ग्रहण करने वाले मुनिपति भिक्षु को देखने के लिए सेविका के रूप में आई हो । यत्र-तत्र मयूर नाच रहे थे। पपीहे मीठे बोल रहे थे । आकाश में बादल छाए हुए थे और वह क्रीडारत बलाकाओं से युक्त था । इस स्थिति में लीला करने के लिए समागत राजहंस उद्विग्न हो उठे थे। उस समय पानी को धारण करने वाला. धीर प्रवन प्रवहमान था। धाराओं से अभिराम इन्द्रधनुषी वस्त्र पहने हुए वह विद्युत् अपने विलास से. प्रमोद बिखेरती. हुई नीचे झुककर चारों ओर स्फुरित हो रही थी। वह वर्षतु धारा से आहत विकसित कदंब पुष्पों के नेत्र वाली तथा प्रफुल्लित मल्लिका आदि से परिपूर्ण थी। ७. रात्रौ रवीन्दुमहदीपपादनिरस्तसन्त्रस्ततमःशरण्या। स्थानस्थशत्रुर्बलवानितीत्वा', सर्वे प्रकाशा विगता यतो वा॥ क यद् का स्वशत्रून् सकलप्रकाशान्, जेतुं महिच्छावनिवदुर्गा । स्फूर्जतस्मिनाममुहासगर्मा, कुह्वाः कमिष्ठा किमु वा कुमारी॥ ९. अजालिका सारसुधाप्रवर्षिशशाङ्कितात्रीक्षणजातपत्न्याः । __ भिया । परित्रालपरिच्युतास्यपदोप्रधामाऽवनकामुको वा ॥ १०. आतङ्किता मानवजातिजातसङघर्षणाघर्षणतोपमः। ___ रक्षार्थिनी सर्वजिनेन्द्रसौधावृताऽभवद् वा प्रभुसद्मपृष्ठा ॥ ११. न कोयननीयवदन्तरालं, अवेष्टुमिच्छेदितिचिन्तया किम् । मुख्यप्रतीहारसुमध्यनीतपुष्टाऽऽयतोन्मत्तशिलाप्रसिद्धा ॥ १२. ये केऽपिातम्या निवसेकुरत्र, न जातुचित्तान् ननु जीवयित्री। इत्यादिकलयातिभिरुग्ररूपा, विभीषयित्री च विचित्रयित्री॥ १३. अन्धारिकीरीतिविधीक्माना, दिवापि लोकातिभयावहा सा। कथं कथञ्चिन् मिलिता प्रयत्नादेकातिलवालयिका लयेन ॥ (सप्तभिः कुलकम्) आचार्य भिक्षु चातुर्मास करने के लिए केलवा नगर में आए। विद्वेषियों द्वारा प्रतिकूल प्रचार के कारण उन्हें स्थान की प्राप्ति के लिए अत्यधिक प्रयत्न करना पड़ा।] १. इत्वा-ज्ञात्वा
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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