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________________ षोडशः सर्गः २२५ २१६. अवितथतमा स्वच्छां चोच्चा नयागममानतो, निरुपममहाक्रान्ति कृत्वा मुदात्मिकतेजसा । जिनवरमतव्यासोल्लासं विधाय च भिक्षुणा, कियदुपचितं पुण्यं पुण्यं तदेति जिनेश्वरः ।। स्वामीजी ने प्रसन्नता के साथ अपने आत्मतेज से न्यायपूर्वक जनागमों के प्रमाण दे-देकर यथार्थ, स्वच्छ, उच्च और निरुपम महाक्रान्ति द्वारा जैनमत की व्यापक प्रभावना कर कितना पवित्र पुण्य-धर्म उपार्जन किया होगा, यह तो जिनेन्द्र देव ही जान सकते हैं। श्रीनाभयजिनेन्द्रकारमकरोद् धर्मप्रतिष्ठा पुनर्, यः सत्यग्रहणाग्रही सहनयराचार्यमिअमहान् । तत्सिद्धान्तरतेन चाररचिते श्रीनत्थमलर्षिणा, श्रीमद्भिामुनीश्वरस्य चरिते सर्गोऽभवत् षोडशः ॥ श्रीनत्थमल्लर्षिणा विरचिते श्रीभिक्षुमहाकाव्ये जनश्रमणकृत्याकृत्यप्रमाणपुरस्सरमुपढौकननामा षोडशः सर्गः।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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