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________________ ११८. श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् उत्तर किसी ने नहीं दिए । आपकी बुद्धि तो ऐसी है कि आप गृहस्थ होते और किसी राजा के मन्त्री होते तो अनेक देशों का राज्य-संचालन करते। तब स्वामीजी बोले-'राज्य-संचालन की बुद्धि से क्या, जो आत्मपतन की ओर ले जाती है ? वही बुद्धि अच्छी है जो जिन धर्म की उपासना करती है और अपने आत्मार्थ को सिद्ध करती है। ४७. व्याख्यानान् मुदिता मुनेः सुमनसः प्राहुः परे यामत, आयाताऽतिनिशा मुधव यतिनां दातुं न तत् कल्पते । क्लिष्टानां महती नणा लगति सा स्तोकापि तव्यत्ययादानन्दोदितगेहिनां मुनिपतिक्षयातवान् सुन्दरम् ॥ ... पीपाड़ में स्वामीजी का चातुर्मास था। आपका व्याख्यान सुनकर सज्जन व्यक्ति अत्यधिक प्रसन्न होते थे और विद्वेषी लोग अप्रसन्न होकर कहते-रात प्रहर से अधिक बीत गई है। साधु को प्रहर रात्री के पश्चात् जोर से बोलना नहीं कल्पता । स्वामीजी ने इसे एक दृष्टांत से समझायादुःखी को छोटी रात भी बड़ी लगती है और उत्सव आदि की आनन्दमयी रात्रियां छोटी लगती हैं । इसी प्रकार जिन्हें व्याख्यान अच्छा नहीं लगता, उन्हें रात बहुत बड़ी लगती है।' ४८. व्याल्यानेऽभिनिवेशतः कतिपयाः कोलाहलं कुर्वते, स्वाम्यूचे शुभमल्लरीरणरणः श्वानो न वुक्कन्ति किम् । इत्वं नृत्यकृतामस्वमनसामर्हत्समक्षेन किं, देवा नर्तनतत्परास्तदिव मेऽप्रेऽमी च वास्ततः॥ (क) पीपाड़ के चातुर्मास में कुछ लोग आग्रहवश व्याख्यान नहीं सुनते, दूर बैठे कोलाहल करते । तब किसी ने कहा- 'भीखणजी ! आप तो व्याख्यान देते हैं और ये निंदा करते हैं।' तब स्वामीजी ने कहां-'झांझ के बजने पर कुत्ते का स्वभाव रोने का होता है, पर वह यह नहीं समझता कि यह झांझ विवाह की है या शवयात्रा की। वैसे ही ये लोग व्याख्यान की ज्ञानवर्धक बातों को स्वीकार करने के बदले निन्दा करते हैं। इनका निन्दा करने का स्वभाव है।' (ख) पर्युषण के दिनों में बावेचा लोगों ने इन्द्रध्वज की यात्रा निकाली। उन्होंने स्वामीजी के सामने बहुत समय तक खड़े रहकर गाया, बजाया और तानें मिलाई। तब कुछ श्रावक बावेचा लोगों से झगड़ा करने १. भिदृ० ११२। २. वही, १८ । ३. वही, १९
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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