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________________ 30/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन इस प्रकार अकम्पन के कहने पर जयकुमार के विरोधी अर्ककीर्ति का रोष दूर हो गया । ततः पराजित अर्ककीर्ति ने अकम्पन से अपनी अविवेकिता और अज्ञानता को स्वीकार करते हुए अपनी ही निन्दा की । जयकुमार ने भी अर्ककीर्ति से क्षमा निवेदन किया जो विस्तृत रूपों में वर्णित है । समर में जिस प्रकार परस्पर विरोध हुआ उसी प्रकार कतिपय क्षणों में ही पुनः भेल भी हो गया। अर्ककीर्ति - जयकुमार का यह मिलन तीनों पक्षों के लिये आनन्ददायक बना। अन्त में सुमार्ग विज्ञ महाराज अकम्पन ने सुलोचना की अनुजा अक्षमाला को भगवान् जिन का स्मरण कर चक्रवर्ती पुत्र अर्ककीर्ति को अर्पण कर दिया। ततः अकम्पन ने अपने हृदय से अभिन्न, गुण-दोष विचार में समर्थ, विपत्ति निवारक, सुमुख नामक दूत को चक्रवर्ती भरत के पास भेजा । दूत भरत के पास पहुँचकर अपने स्वामी के सन्देश को चक्रवर्ती से निवेदन किया। ____चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत अनेक प्रकार से अकम्पन आदि की प्रशंसा करते हुए एक अच्छे सम्राट की भाँति, विनम्र वाणी में बोले कि हे विचक्षण ! लक्षण से विचार करने पर सुलोचना के पिता उत्तम पुरुष हैं और जयकुमार भी महामना उदारचित्त हैं, केवल अर्ककीर्ति तीक्ष्ण स्वभाव वाला है, ऐसा समझो । इस प्रकार चक्रवर्ती भरत के उत्तम वचन को सुनकर दूत बोला हे सुदर्शन ! आपका तेज मित्र सूर्य पर भी विजय प्राप्त करे । आपकी महिमा पृथ्वी परिमाण वाली एवं अद्भुत है । यद्यपि सुदर्शन दुर्जन संहारक है परन्तु सज्जन का प्रतिपादक भी है । इस प्रकार वह दूत चक्रवर्ती भरत की महिमा गान कर तथा उनके प्रति पुनः अनुराग प्रदर्शित कर उनकी चरणधूलि को लेकर प्रस्थान किया । लौटकर अकम्पन से समाचार निवेदन किया । अकम्पन भी प्रसन्न होकर भावी कार्य में लग गये। . इस प्रकार भरतरवन नामक चक्रबन्ध से इस सर्ग की समाप्ति की गयी है । दशमः सर्ग : .. दशम सर्ग में विवाहोत्सव की तैयारी का वर्णन किया गया है । घन-सुषिर - तनतआनद्ध चार प्रकार के बाजे बजने लगे । सुलोचना को सखियों ने उसे सजाया । महाराज अकम्पन ने जयकुमार को बुलाने के लिये सेवकों को भेजा । जयकुमार को इनके आत्मीय व्यक्तियों ने सजाया। प्रजा जनों द्वारा राजमार्ग व्याप्त हो गया । स्त्रियों में शीघ्रता करने की स्थिति उत्पन्न हो गयी । जयकुमार को देखकर स्त्रियाँ परस्पर नाना प्रकार की बातें करने लगीं कि हे सखी! मैं समझती हूँ कि सुन्दरी सुलोचना के प्रशंसनीय आचरण, राजा अकम्पन का चरित्र तथा कवियों का छन्दोबद्ध गुण-गान से त्रैलोक्य का पूर्ण सुख इस वर के व्याज से एकत्रित हो
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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