SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 卐 卐 किया है। किशनगढ़ मदनगंज (राज.) में जयोदय महाकाव्य राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान बृहदत्रयी में जयोदय महाकाव्य को जोड़कर वृहद् चतुष्टयी की शताधिक विद्वानों ने घोषणा कर प्रस्ताव पास किया है । अर्थात् शिशुपाल वध, किरातार्जुनीयं, एवं नैषधीय चरित्र यह तीनों साहित्य जगत में प्रमुख महाकाव्य माने जाते हैं रहे हैं। लेकिन विद्वानों ने जब जयोदय महाकाव्य को पढ़ा तो अनुभव किया कि इस महाकाव्य में उपरोक्त तीनों महाकाव्यों की अपेक्षा कई गुना अधिक काव्य कौशल प्रगट होता है । बारहवीं शताब्दी के बाद यह प्रथम महाकाव्य है जो वृहद्यी के समकक्ष माना गया है । ऐसे महान महाकाव्य पर डॉ. पाण्डेय ने सन् 1981 में यह शोध कार्य कर किया था । आपके पिता श्री ने जयोदय महाकाव्य की (मूल श्लोक मात्र जिसमें प्रकाशित थे) मूल प्रति को पढ़कर अपने पुत्र कैलाशपति पाण्डेय जी को इस पर शोध कार्य करने को कहा। आप ब्राह्मण कुलीन होकर भी जैन महाकवि की कृति पर शोध कार्य करने का जो साहस किया है इसकी साहित्य जगत युगों-युगों तक प्रशंसा करता रहेगा । आपने सम्प्रदाय निरपेक्षता का आदर्श प्रस्तुत करके विद्वानों को सतर्क किया है कि साहित्यिक कृति का मूल्यांकन करते समय साम्प्रादायिक विद्वेष नहीं रखना चाहिये । पाण्डेय जी के हृदय में वेदना थी कि साहित्य जगत की अनुपम कृति को विद्वान सम्प्रदाय विद्वेषताओं के कारण उपेक्षा कर रहे हैं । इस असहनीय वेदवा की सम्वेदना से प्रेरित होकर इस महाकाव्य को अपने शोध का विषय बनाकर आगे आने वाले शोधर्थीयों के लिए अदर्शता प्रगट की है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित था । महाकवि आ. ज्ञानसागर जी के साहित्य से साहित्य जगत को परिचय कराकर उच्चासन प्राप्त कराने वाले, साहित्य प्रेमी, अभीक्ष्ण ज्ञानोपोगी मुनिपुङ्गव मुनि श्री सुधासागरजी महाराज को जब यह ज्ञात हुआ कि जयोदय महाकाव्य पर सर्वप्रथम किया गया शोध कार्य अभी तक अप्रकाशित है । तब पाण्डेय जी को बुलाकर उनसे इस शोध कार्य को करते समय अनुकूलताओं एवं प्रतिकूलताओं सम्बन्धी संस्मरण आत्मीयता के साथ सुने तथा इस शोध ग्रन्थ को केन्द्र से प्रकाशित कराने का भी आशीर्वाद प्रदान किया । हमारा केन्द्र इस शोध ग्रन्थ को प्रकाशित करके अपने आपको गौरान्वित अनुभव करता है, इस शोध ग्रन्थ ने साहित्य जगत के इतिहास में चिरस्थाई स्थान प्राप्त कर लिया है । - साहित्य पिपासु इस शोध ग्रन्थ को पाकर निश्चित रूप से महाकवि के काव्य कौशल को समझेगे इसी भावना के साथ अरुणकुमार शास्त्री ब्यावर बृहद्-चतुष्टयी जयोदय महाकाव्य राष्ट्रिय विद्वत्संगोष्ठी (दिनांक 29.9.95 से 3.10.95 ) मदनगंजकिशनगढ़ में देश के विविध भागों से समागत हम सब साहित्याध्येता महाकाव्य के अनुशीलन निष्कर्षों पर सामूहित काव्यशास्त्रीय विचारोपरान्त वाणीभूषण महाकवि भूरामल शास्त्री द्वारा प्रणीत जयोदय महाकाव्य को संस्कृत साहित्येतिहास में बृहत्त्रयी संज्ञित शिशुपालवध, किरातार्जुनीय एवं नैषधीयचरित महाकाव्य के समकक्ष पाते हैं। अतः हम सब बृहत्त्रयी संज्ञित तीनों महाकाव्यों के साथ जयोदय महाकाव्य को सम्मिलित कर बृहच्चतुष्टयी के अभिधान से संज्ञित करते हैं । 筑
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy