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________________ 224 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन बाहुबली : ऋषभदेव की दूसरी रानी सुनन्दा से उत्पन्न पुत्र । इनकी सुन्दरी नाम की एक बहन थी । ऋषभदेव अयोध्या का राज्य भरत को दिये तथा पोदनपुर की गद्दी पर बाहुबली को प्रतिष्ठित किया । ततः दिग्विजय काल में भरत की अधीनता स्वीकार न करने के कारण इन दोनों भाईयों में नेत्र, जल और मल्ल युद्ध हुआ जिसमें पराजित भरत बाहुबली पर चक्र छोड़ दिया । किन्तु चक्र भी प्रदक्षिणा करके रुक गया । अन्ततः बाहुबली चक्रवर्ती के व्यवहार से बहुत ही खिन्न हुए तथा जंगल में जाकर मुनि दीक्षा ले ली। वे एक वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े होकर तपश्चरण करके केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हुए। इस तरह वे वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम मुक्तिजयी महापुरुष हुए और शलाका-पुरुष के रूप में पूजे जाने लगे । अभी हाल में 22 फरवरी को श्रवणबेलगोल में भगवान् बाहुबली का सहस्राब्दी महा * मस्तकाभिषेक हुआ है । जहाँ लाखों दर्शनार्थी जाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए । दार्शनिक शब्द समूह लेश्या: जिस प्रकार आमपिष्ट (दाल की पिट्ठी या तैलादि) से मिश्रित गेरू मिट्टी के लेप द्वारा भित्ती (दीवाल) लीपी जाती है, उसी प्रकार शुभ और अशुभ भावरूप लेप के द्वारा जो आत्मा का परिणाम लिप्त किया जाता है, उसे लेश्या कहते हैं । ढांणांश सूत्र में लेश्या की टीका इस प्रकार की गयी है - लिश्यते प्राणिनः कर्मणाया सा लेश्या । " जैन ग्रन्थों में लेश्या छः प्रकार की बतायी गयी है- (1) कृष्ण लेश्या (2) नील लेश्या (3) कापोत लेश्या (4) तेजोलेश्या (5) पद्म लेश्या ( 6 ) शुक्ल लेश्या । लेश्याओं का सविस्तार वर्णन द्रव्यलोक प्रकाश में आता है । उसी स्थल पर उनके रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि का भी विस्तार से वर्णन है । व्यन्तर : उत्तराध्ययन सूत्र में चार प्रकार के देवता कहे गये हैं । वहीं आठ प्रकार के व्यन्तर बताये गये हैँ । तत्त्वार्थसूत्र सटीक में किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच इन आठ तरह के भेद व्यन्तर देव के बताये गये हैं । अभिधान चिन्तामणि में भी इसी का समर्थन प्राप्त है" । नवतत्त्व : जैन दर्शन में नव तत्त्वों का निरूपण किया गया है । आचार्य हरिभद्र सूरि ने (1)
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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