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________________ दोधक : तीन भगण एवं दो गुरु को दोधक कहते हैं । जिसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है - " स्वष्टदल कमलं मलयन्ती कौमुदमुत्क लमुत्क लयन्ती । वृत्तिमवन्क्षणदां स्वकलाभिः सोऽभिरराज सुधांशुसनाभिः ॥ "71 - इस प्रकार वाणीभूषण ब्रह्मचारी भूरामल जी शास्त्री विरचित 'जयोदय महाकाव्य' के अट्ठाईस सर्गों में आये हुए उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, अनुष्टुप्, आर्या, द्रुतविलम्बित, शार्दूलविक्रीडित, रथोद्धता, इन्द्रवज्रा, भुजङ्गप्रयाति, वसन्ततिलका, स्रग्विणी, सुन्दरी, वंशस्थ, शिखरिणी, पृथ्वी, स्वागता, तामरस, इन्द्रवंशा, मत्तमयूर, उभयविमुला, मुख विमला, पुष्पिताग्रा, मालिनी, पज्झटिका, दोडका, वैताली एवं दोधक छन्दों का प्रयोग कर प्रत्येक सर्ग का पर्यवसान शार्दूलविक्रीडित छन्द से किया गया है । हमने सर्ग क्रम से आये हुए छन्दों का लक्षण और उदाहरण देते हुए विवेचना किया क्योंकि सभी श्लोकों को देना विषय का कलेवर ही बढ़ाना है । अतः छन्दों का दिग्दर्शन मात्र करा दिया गया है । अष्ठम अध्याय / 209 फुट नोट 1. छन्दः पादौ तु वेदस्य । 2. शिक्षा कल्पोऽथ व्याकरणं निरुक्तं छन्दसां चयः । ज्योतिषाययनं चैवे दाङ्गानि षडेव तु ॥ 3. छन्दोहीनोनशब्दोस्ति, नच्छन्दश्शब्दवर्जितः । - ना। शा. 15/40 4. जिस-जिस स्थान पर जिह्वा स्वेच्छापूर्वक विश्राम करती है, उसको यति कहते हैं । विच्छेद, - विराम, विरति आदि इसके नामान्तर है यतिजिह्वेष्ट विश्रामस्थानं कविभिरुच्यते । साविच्छेद् विरामाद्याः पदैर्वाच्या निजेच्छया ।। छन्दोमंजरी 1/12 5. जिस वृत्त के चारों चरण, या पाद समान वर्ण वाले हों, वह 'समवृत्त' छन्द होता है। अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा आदि । यथा 6. जिसका प्रथम एवं तृतीय चरण द्वितीय तथा चतुर्थ चरण समान हो उसे 'अर्द्धसमवृत्त' छन्द कहते हैं । यथा - - *** - वियोगिनी, पुष्पिताग्रा आदि । 7. चारों चरणों में भिन्नता रखने वाले वृत्त को विषमवृत्त कहते हैं । उद्गता गाथा आदि 8. छन्दोमंजरी 1/11 इसके अन्तर्गत आते हैं । 9. गुरुरेको गकारस्तु लकारो लघुरेककः । क्रमेण चैषां रेखाभिः संस्थानं दर्श्यते यथा ॥ - छन्दोमंजरी 1/9 10. पद्यं चतुष्पदी, तच्च वृत्तं जातिरिति द्विधा । वृत्तमक्षरसङ्ख्यातं जातिर्मात्राकृता भवेत् ॥ छन्दोमंजरी 1/4 11. छन्दोमंजरी 1/8 12. वही, 14. सुवृ. ति. 3/7 15. वहीं । 13. सुवृ. ति. 3/7
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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