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________________ अष्ठम अध्याय /205 इसके अतिरिक्त इसी सर्ग में वंशस्थ, उपजाति, उपेन्द्रवज्रा आदि विभिन्न छन्दों में वर्णन कर अन्त में मत्तमयूर छन्द का प्रयोग करते हुए सर्गान्त शार्दूलविक्रीडित छन्द से किया गया है, जिसका विवेचन ऊपर किया जा चुका है। षष्ठ सर्ग का प्रारम्भ आर्या छन्द से हुआ है । आर्या के भेदों के साथ इसमें आये हुए अन्य वृत्तों का वर्णन भी प्रस्तुत है - आर्या जाति के अनेक भेद हैं । जिसमें विपुला का लक्षण है कि आर्या छन्द के पूर्वार्ध उत्तरार्ध दोनों में तीन गण पार कर अर्थात् बारह मात्रा पार करके चौथे गण पर विराम होता है, ऐसे छन्द को विपुला आर्या कहते हैं । परन्तु तृतीय अध्याय के श्लोक चार की टीका में नारायण भट्ट टीकाकार ने यह भी लिखा है कि पिंगल सूत्र के विवेचनानुसार विपुला के तीन भेद होते हैं - मुख विपुला, जघन विपुला, उभय विपुला (महा विपुला) । मुख विपुला : जहाँ पर पूर्वार्ध में तीन गण के बाद अर्थात् चौथे गण पर विराम हो तो उसे मुख विपुला कहते हैं । जैसे - "वैद्योपक मसहितांस्तत्र नभोगाधिभुव इमान् सुहिता । तत्याज सपदि दूरा मधुराधरपिण्डखजूरा ॥58 जघन विपुला : यदि उत्तरार्ध ही में तीन गण के पश्चात् चौथे गण पर विराम हो तो जघन विपुला कहा जाता है । प्रकृत ग्रन्थ में इसका कोई उदाहरण प्राप्त नहीं है । महा विपुला : यदि पूर्वार्ध उत्तरार्ध दोनों में इस प्रकार के विराम हो तो उसे महाविपुला या उभय विपुला कहा जाता है । तीन गण के पश्चात् यह विराम कहीं भी हो सकता है। क्योंकि आगे भी आर्या के भेदों में इस प्रकार के उदाहरण देखे जाते हैं । महाविपुला का उदाहरण विपुला लक्षणात्मक श्लोक भी हो जाता है । यथा - "किममीषां विषयेऽन्यत्पवित्रकटिमण्डले च निगदामि । सुरतानुसारिसमयैर्वा मानवविस्मयायाऽमी ॥'59 इसके अतिरिक्त आर्या का विशेष वर्णन कर स्वागता तथा शार्दूलविक्रीडित छन्दों में वर्णन कर सर्ग की समाप्ति कर दी गयी है। ___पूरे सप्तम सर्ग में अनुष्टुप्, रथोद्धता, सुन्दरी, वसन्ततिलक छन्द का वर्णन कर अन्त में शार्दूलविक्रीडित छन्द से सर्ग की समाप्ति कर दी गयी है । अष्ट सर्ग में आगत छन्दों में उपेन्द्रवज्रा, इन्द्रवज्रा, उपजाति, आर्या, अनुष्टुप् का वर्णन कर शार्दूलविक्रीडित से सर्ग की समाप्ति कर दी गयी है। नवम् सर्ग में द्रुतविलम्बित, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, रथोद्धता, आर्या तथा अन्त में शार्दूलविक्रीडित छन्द से सर्ग का पर्यवसान किया गया है । इन सभी छन्दों का वर्णन ऊपर कर दिया गया है कोई नूतन छन्द का प्रयोग नहीं हआ है।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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