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________________ कति-निधि सौभाग्य से महान् सन्त कवि वाणी भूषण ब्रह्मचारी भूरामल शास्त्री प्रणीत पूर्णतया अनालोचित जयोदय महाकाव्य मुझे प्राप्त हुआ । जिसे देखकर मुझे प्रतीत हुआ कि वैदिक युग से प्रभावित होने वाली पवित्र ज्ञान मन्दाकिनी अपने अनिन्द्य, अनवद्य, वपु के द्वारा बहती हुई लौकिक संस्कृत साहित्य के विविध विधाओं के रूप में जैन धर्म के प्रति मूर्ति बीसवीं सदी के अग्रगण्य काव्याचार्य आचार्य ज्ञानसागर में समायी हुई है । ततः लोकविश्रुत विद्वान् पूज्य पितामह स्वर्गिय पं. श्री भवानीवदल पाण्डेय की जैन धर्म में अटूट श्रद्धा से सम्प्रेरित होकर उक्त महाकाव्य को ही अपनी पी.एच.डी. उपाधि हेतु चुना, "जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन' विषय पर गोरखपुर विश्वविद्यालय की अनुमति से शोधकार्य किया । "जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन" को मैंने नवलघु अध्यायों में विभक्त किया है जो प्रकृत ग्रन्थ में द्रष्टव्य हैं । यद्यपि महान् दार्शनिक जैनाचार्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की समस्त कृतियों पर कार्य न कर सकने का मुझे हार्दिक क्लेश है तथापि संस्कृतनिष्ठ जनों के समक्ष प्रस्तुत शोध प्रबन्ध को समर्पित करते हुए इतना तो सन्तोष है ही कि इसके माध्यम से संस्कृत जगत में एक और कवि और उसकी रचना को लोगों के समक्ष लाने के श्रेय का अनायास ही भागी बन गया हूँ। निरन्तर ज्ञान की आराधना में संलग्न पुज्य पितामह स्वर्गिय पं. श्री भवानीवदल पाण्डेय के प्रति मैं प्रणत हूँ जिनके चरणों में बैठकर मैंने जयोदय महाकाव्य का अध्ययन किया । साथ ही साथ पितामही स्वर्गीया श्रीमती जिउद्या देवी के चरणों में शिरसा नमन है, जिनकी ममतामयी छाँव पाकर अध्ययन सफल हुआ । ___ जयोदय महाकाव्य ग्रन्थ का सहयोग प्रदान करने वाले तत्कालीन रीडर स्वर्गिय डॉ. रामअवध पाण्डेय काशी हिन्दू विश्वविधालय के प्रति श्रद्धानंत
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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