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________________ सप्तम अध्याय / 167 चरणानुयोग में दिया गया है । जयकुमार के चरण सम्पर्की अर्थात् चरण के समीप में आये हुए (शरणागत) व्यक्तियों के लिये किसी प्रकार का दुःख नहीं हुआ यह सरल • शब्द उपजाति वृत्त के द्वारा दिखाया गया है । यह शासन प्रबन्ध प्रदर्शन शैली यथार्थ निरूपण के लिये स्वाभाविक प्रवाह से भरी हुई है । यथा "दिगम्बरत्वं न च नोपवासश्चिन्तापि चित्ते न कदाप्युवास । मुक्तो जनः संसरणात्सुभोगस्तस्याद्भुतोऽयं चरणानुयोगः ॥''30 जयकुमार के दया-दाक्षिण्य, उदारता, शासन कुशलता आदि का वर्णन कर विषयौचित्य प्रगट करने से यहाँ काव्य अलौकिक आनन्दप्रद बन गया है । 4. गुणौचित्य : औचित्य विचार चर्चा की चौदहवीं कारिका में क्षेमेन्द्र ने गुणौचित्य का अनुपम वर्णन किया है, जिसमें कहा गया है कि जिस प्रकार कान्ता संगम समय में नवोदित चन्द्र आनन्द का क्षरण करता है, उसी प्रकार प्रस्तुत अर्थ के अनुरूप ओज, प्रसाद, माधुर्यादि गुण काव्य में सुन्दर एवं स्वकर्तव्य निपुण होते हैं । जयोदय महाकाव्य में गुणौचित्य का अपना उचित स्थान है यथा"दृष्ट वा स्वसेनामरिवर्गजेनाऽयुधन मेणास्तमितामनेनाः । रोद्धञ्च योद्धं जय ओजसो भूः श्रीवाकाण्डाख्य धनुर्धरोऽभूत् ॥132 इस पद्य में शत्रु दल के साथ जयकुमार सेना का युद्ध बताया गया है । पवित्र जयकुमार ने शत्रु मण्डल के आयुधाक्रमण से अपनी सेना को अस्त होते हुए देखकर शत्रु सैन्य को रोकने के लिये तथा युद्ध करने के लिये व्रजकाण्ड नामक धनुष को धारण किया । यहाँ 'दृष्ट्वा' में संयुक्ताक्षर 'व्' 'ट्' वर्ग में 'र' 'ग' क्रमेण 'र' 'क' 'स्तमेत्' में स् त् रोद्धं-योद्धं में 'द्' 'ध' वज्र में 'ज' 'र' काण्डाख्य में ख 'य' धनुर्धर में र ध ये वर्ण विन्यास ओज गुण से पूर्ण हैं । अतः ओज गुणौचित्य समीचीन है। सुलोचना वर्णन प्रसङ्ग में प्रकृत औचित्य का एक और उदाहरण द्रष्टव्य है - "कुसुमगुणितदाम निर्मलं सा मधुकररावनिपूरितं सदंसा । । गुणमिव धनुषः स्मरस्य हस्तकलितं संदधती तदा प्रशस्तम् ॥'133 - यहाँ शोभन स्कन्ध प्रदेश वाली सुलोचना भ्रमरों के शब्दों से पूर्ण तथा उज्जवल पुष्पों की माला को अनङ्ग के धनुष की डोरी की भाँति कर में लेकर सुशोभित हुई । इस पद्य में अल्प समास वाले पद दिये गये हैं तथा संयुक्ताक्षरों की अधिकता नहीं है । इस दृष्टि से यह पद्य माधुर्य गुण से ओतप्रोत है । अतएव यहाँ भी गुणौचित्य का समुचित सौन्दर्य उल्लसित हो रही है। .
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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