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________________ ने प्राय: 27 प्रकार का विचार हेतु सोपान बना रखा है (1) पद, (2) वाक्य, (3) प्रबन्धार्थ, (4) गुण, (5) अलङ्कार, (6) रस, (7) क्रिया, (8) कारक, (9) लिङ्ग, (10) वचन, (11) विशेषण, (12) उपसर्ग, (13) निपात, (14) काल, (15) देश, (16) कुल, ९ (17) व्रत, (18) तत्त्व, (19) सत्त्व, (20) अभिप्राय, ( 21 ) सार-संग्रह, ( 22 ) प्रतिभा, ( 23 ) अवस्था, (24) काव्यार्थ, ( 25 ) विचार, (26) नाम (संज्ञा), (27) आशीर्वाद । इन्हीं स्थानों में औचित्य की सुस्पष्टतः प्रतीति होती है । सप्तम अध्याय / 165 आचार्य क्षेमेन्द्र ने यह स्वीकार किया है कि काव्य का जीवन धायक औचित्य ही है । यदि औचित्य नहीं है तो अलङ्कार गुण, रस आदि सब व्यर्थ हैं । क्योंकि रस परिपाक में औचित्य ही प्रधान है । औचित्य ही सिद्ध रस का स्थिर प्राण है 24 । T 1 जयोदय महाकाव्य में औचित्य का सन्निवेश पर्याप्त है । प्रत्येक सर्ग में विषयानुसार वृत्तचयन तथा प्रसादगुण को अपनाया गया है, जिसका निदर्शन अवधेयार्थ है - 1. पदौचित्य : पदौचित्य के सम्बन्ध में औचित्य विचार चर्चा ग्रन्थ के निर्माता आचार्य क्षेमेन्द्र ने लिखा है कि जिस प्रकार सरदिन्दु मुखी सुन्दरी के ललाट पर कस्तूरी निर्मित श्याम तिलक शोभा देता है एवं श्याम वर्ण कामिनी के ललाट पर श्वेत चन्दन का तिलक शोभा देता है, उसी प्रकार एक भी समुचित प्रयोग किया गया पद काव्यात्मक वाणी में अपूर्व मधुरिमा का संचार कर देता है 25 । पदौचित्य से यह महाकाव्य सर्वथा ओतप्रोत है । इसके उदाहरण से कोई स्थल शून्य नहीं है तथापि स्थाली पुलाक न्याय से उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है । षष्ट सर्ग में स्वयंवर वर्णन प्रसङ्ग में अर्ककीर्ति के समक्ष जिस समय सुलोचना पहुँचती है और विद्यादेवी अर्ककीर्ति का परिचय देकर उनके साथ सम्बन्ध हेतु सुलोचना को मर्यादानुसार इङ्गित करती है, उस समय सम्बन्ध योजना में सुलोचना को अम्भोजमुखि इस पद से सम्बोधित किया गया है । कमल का अर्क अर्थात् सूर्य के साथ सम्बन्ध होने में प्रसन्नता प्राप्त होती ही है, इसी दृष्टि से यह सम्बोधन दिया गया है । विद्यादेवी कहती हैं 44 'भरतेशतुगेष तवाथ रतेः स्मरवत् किमर्क कीर्तिरयम् । अम्भोजमुखि भवेत्सुखि आस्यं पश्यन्सु हासमयम् ।। 126 तात्पर्य यह है कि हे कमल मुखी ! यह चक्रवर्ती भरत का पुत्र अर्ककीर्ति है, तुम्हारे मुख को देखकर वह वैसे ही प्रसन्न हो जायेगा, जैसे रति को देखकर कामदेव प्रसन्न हो जाता है । इस पद्य में अम्भोज मुखि ! यह सम्बोधन पदौचित्य का पूर्ण परिचायक है । इसी प्रकार आगे के श्लोकों में भी यह औचित्य मनोरम है । पदौचित्य का एक दूसरा उदाहरण प्रस्तुत है -
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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