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________________ षष्ठ अध्याय / 149 इनमें से जहाँ व्यङ्गय अर्थ की प्रधानता हो वहीं काव्य उत्तम कोटि का माना गया है । काव्य में व्यङ्ग्यार्थ के प्राधान्याप्राधान्य तथा साहित्य को ध्यान में रखकर सर्वप्रथम आनन्दवर्धन ने काव्य का तीन भेद किया उत्तम, मध्यम और अधम। उत्तम काव्य में व्यङ्ग्यार्थ वाक्यार्थ की अपेक्षा अधिक चमत्कार युक्त होता है । विद्वान् लोग इसी को ध्वनि काव्य कहते हैं। इस ध्वनिकाव्य के भी तीन वर्ग हैं - रसध्वनि, अलङ्कारध्वनि और वस्तुध्वनि । इनमें भी रसध्वनि सर्वश्रेष्ठ है और यही काव्य का उत्तम रूप है । पण्डित राज 1 ने इसका उत्तमोत्तम नामकरण किया है । काव्य के दूसरे भेद को गुणीभूतव्यङ्गय भी कहते हैं । I I अधम काव्य को चित्र काव्य भी कहा जाता है । इस प्रकार के काव्य में व्यङ्गयार्थ स्फुट नहीं रहता । मम्मट ने इसको 'शब्दचित्र' और 'अर्थचित्र' दो वर्गों में विभक्त किया है । मम्मट ध्वनिकार के उक्त वर्गीकरण का अनुसरण करते हैं । साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने चित्रकाव्य को काव्य भेद न मानकर केवल 'ध्वनि और गुणीभूत व्यङ्गय' को ही काव्य भेद माना है । क्योंकि 'रसात्मक काव्य रूप काव्य की सीमा के भीतर इस प्रकार की काव्य रचना नहीं आ सकती । मम्मट के चित्र नामक एक तीसरे काव्य भेद के स्वीकार करने के सम्बन्ध में कविराज विश्वनाथ ने इस प्रकार लिखा है 'शब्दचित्रं वाक्यचित्रमव्यङ्गयं त्ववरं स्मृतम् । इति ।" तन्न, यदि हि अव्यङ्ग्यत्वेन व्यङ्ग्याभावस्तदा तस्य काव्यत्वमपि नास्तीति प्रागेवोक्तम् । ईषद्व्यङ्ग्यत्वमिति चेत, किं नामेषद्व्यङ्ग्यत्वम्? आस्वाद्य व्यङ्ग्यत्वम्, अनास्वाद्यव्यङ्ग्यत्वं वा ? आद्ये प्राचीनभेदयोरेवान्तः पातः । द्वितीये त्वकाव्यत्वम् । यदि चास्वाद्यत्वं तदाऽक्षुद्रत्वमेव क्षुद्रतायामनास्वाद्यत्वात् । तदुक्तं ध्वनिकृता- . "प्रधानगुणभावाभ्यां उभे काव्ये व्यवस्थिते व्यङ्ग यस्यैवं ततोऽन्यद्यत्तच्चित्रमभिधीयते 1158 """ इति पण्डित राज के विचार से काव्य के चार भेद हैं- (1) उत्तमोत्तम, (2) उत्तम, (3) मध्यम और (4) अधम । जिस काव्य में शब्दार्थ अपने को गौण करके व्यंजनावृत्ति से किसी चमत्कार जनक अर्थ को अभिव्यक्त करे वह उत्तमोत्तम काव्य होता है । इसी को अन्य आचार्यों 1 ध्वनि काव्य कहा है । जिसमें अप्रधान व्यङ्ग्य ही चमत्कार कारण हो, वह उत्तम नामक द्वितीय काव्य भेद है” । जहाँ व्यङ्गय चमत्कार और वाच्य चमत्कार एक अधिकरण में न हो वहाँ काव्य का मध्यम नामक भेद होता है । जिस वाक्य में वाक्यार्थ के चमत्कार से उपस्कृत होकर शब्द का चमत्कार प्रधान हो उसको अधम काव्य कहते हैं । जहाँ मुख्यतः रस भाव आदि की अभिव्यंजना होती है, वह उत्तमोत्तम काव्य अवश्य है, को काव्य की सीमा से बहिष्कृत नहीं किया जा सकता" । परन्तु अन्य रचनाओं
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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