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________________ षष्ठ अध्याय /143 से भी है" । भरत द्वारा परिगणित प्रवृत्तियों में पाञ्चाली भी हैं । वामन ने शायद यहीं से अपनी पा चाली के लिए संकेत ग्रहण किया हो । भामह के 'काव्यालङ्कार' के अनुशीलन से विदित होता है कि उनके समय में वैदर्भी और गौडीय मार्ग प्रचलित थे । वे (भामह) इन दोनों मार्गों में कोई भेद नहीं मानते । बाणभट्ट के समय में भारतवर्ष की चारो दिशाओं में चार प्रकार की शैलियाँ विद्यमान थी "श्लेषप्रायमुदीच्येषु प्रतीच्येष्वर्थमात्रकम् ।. उत्प्रेक्षा दाक्षिणात्येषु गौडे ष्वक्षरडम्बरः ॥20 दण्डी ने रीति के लिये मार्ग शब्द का प्रयोग किया है । इन्होंने रीति में व्यक्ति का प्रभाव स्वीकार किया । इनके मत में प्रत्येक कवि की अपनी विशिष्ट रीति होती है, जिसका व्यक्तित्व के साथ प्रचुर सम्बन्ध होता है। कवियों के अनेक होने से रीतियाँ भी अनेक हैं। इन्होंने श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थ व्यक्ति, उदारता, ओज, कान्ति, समाधि दस गुणों को वैदर्भ मार्ग का प्राण कहा है । गौडीय मार्ग में इनके अनुसार उपर्युक्त गुणों का विपर्यय रहता है । आचार्य वामन ने रीति को काव्य की आत्मा बतलाया है । इसी सम्बन्ध में वहाँ कहा गया है कि विशिष्ट पद रचना को रीति कहते है । रचना में विशिष्टता यह है कि गुणों की स्थिति द्वारा यह रीति उत्पन्न होती है इसलिये गुण पर ही रीति का रहना आधारित है । यह रीति गुण सम्प्रदाय नाम से भी व्यवहृत है । काव्यलङकार सूत्र में कहा गया है "ओजःकान्तिमती गौडीया। 125 इसी प्रकार "समग्र गुणा वैदर्भी 126 "माधुर्य सौकुमार्योप पन्ना पाञ्चाली।27 आनन्दवर्धनाचार्य ने रीति का ही दूसरा नाम संघटना रखा । संघटना से तात्पर्य शोभन पदों की रचना से है । संघटना में जो 'सम्यक् ' विशेष है, उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि घटना का सम्यक्त्व गुणों के ही कारण है । इस तरह यह स्पष्ट है कि वामन की विशिष्टा पद रचना' और आनन्दवर्धन की 'संघटना' तुल्यार्थ बोधक होने से एक ही है । रीति गुणाश्रयी है । वह रसाभिव्यक्ति का माध्यम है । इन्होंने रीति नियामक तत्त्वों पर भी प्रकाश डाला। उनके नाम इस प्रकार हैं (1) वक्त औचित्य (2) वाच्यौचित्य (3) विषयौचित्य और (4) रसौचित्य । राजशेखर ने रीति का लक्षण इस प्रकार किया है - "वचनविन्यासक्रमो रीतिः" यह परिभाषा वामन की परिभाषा से भिन्न नहीं है, केवल शब्दान्तर है । इनके अनुसार रीतियों का वैलक्षण्य इस प्रकार है
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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