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________________ 128/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन अतएव अन्त्यानुप्रास मनोज्ञ है। इसी प्रकार उक्त सर्ग से कतिपय उदाहरण प्रस्तुत हैं - (क) "मार्गमस्तमयितुं तुरङ्गमाः शीघ्रमेव मरूतो द्रुतं गमाः । __उद्गिरन्त इव तुण्डतः क्षुराञ्चेलुरत्र तु परास्तर्मुमुराः ॥160 (ख) "पादिनामतिजवेन गच्छतां तेच्छदारव तदा गरुन्मताम् । रेजिरे भुवि भुजा निरन्तरं संचलन्त उचिता इतादरम् ॥161 (ग) “अध्वकर्तनविवर्तविग्रहास्तेऽपि वर्द्धितपरस्परस्पृहाः । . शीघ्रमेव गमनश्रमंसहाः पत्तयो ययुरमो समुन्महाः ॥162 1. यमक : आचार्य विश्वनाथ ने कहा है कि जहाँ स्वर सहित व्यंजन समूह की आवृत्ति की जाय वहाँ ' यमक' अलङ्कार होता है वह आवृत्ति स्वर व्यंजन समूह कहीं दोनों सार्थक होते हैं और निरर्थक होते हैं । कहीं एक सार्थक और दूसरा निरर्थक होता है । इतना ही नहीं कहीं पाद की आवृत्ति, कहीं पादार्थ की आवृत्ति, कहीं श्लोक की आवृत्ति और कहीं पर पाद के आदि भाग की आवृत्ति होती है । इस प्रकार इस अलंकार के बहुत से भेद हो जाते हैं । अन्य आचार्यों ने भी इसके बहुत से भेदों को बतलाया है । जैसे 'काव्यालङ्कार सूत्र' ग्रन्थ के निर्माता ने बतलाया है कि स्थान नियम के साथ अनेकार्थक पद अथवा अक्षर की आवृत्ति को 'यमक' कहते हैं । यमक में पद आदि की आवृत्ति के सम्बन्ध में वामन का कथन है कि एक सम्पूर्ण पाद और एक अथवा अनेक पाद के आदि, मध्य, अन्त भाग यमक में आवृत्ति के उचित स्थान हैं165 । इस अलङ्कार का कुछ उदाहरण दिखाया जा रहा है, क्योंकि सबको दिखाना केवल पृष्ठ बढ़ाना मात्र है। अतएव इस दृष्टि से निम्नस्थ पद्य विचारणीय है - "समभूत्समभूतरक्षणः स्वसमुत्सर्गविसर्गलक्षणः । शिवमानवमानवक्षणः नृपतेरुत्सवदुत्सवक्षणः ॥16 प्रकृत पद्य में जयकुमार के पुत्र अनन्तवीर्य की उत्पत्ति होने पर तथा तन्निमित्तक राज्याभिषेक वर्णनावसर में कवि ने व्यक्त किया है - "समदृष्टि से प्राणिमात्र का रक्षक, उत्सर्ग-विसर्ग गुण युक्त जयकुमार के लिये उत्सव स्वरूप एवं मानव मात्र के लिये नवीन मंगलमय स्वरूप कल्याण प्रदान करने वाला अनन्तवीर्य नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ।" __यहाँ 'क्षण' इस वर्ण समूह की चारों चरणों के अन्त में आवृत्ति है तथा तृतीय चरण में 'मानव', 'मानव' की आवृत्ति रम्य है । ऐसे ही चतुर्थ चरण में 'उत्सव' 'उत्सव' की आवृत्ति दर्शनीय है । अतएव यमक अलङ्कार दिव्य है । इस प्रकार यह सर्ग अधिकांशतः यमकालङ्कार से भरा हुआ है। ऐसे ही अन्य सर्गों के कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं । यथा -
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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