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________________ ३६ जैनकुमारसम्भव : जयशेखरसूरि पालन के लिये उन्होंने विवाह अवश्य किया पर काम उन्हें अभिभूत नहीं कर सका। वे विषयों को पूर्व जन्म का भोक्तव्य मान कर उन्हें अनासक्ति तथा उचित उपचारों से भोगते हैं। काम के अमोघ बाण यदि कहीं विफल हुए हैं तो ऋषभदेव पर (३.११) । कवि ने उनके चारित्रिक गुणों का समाहार प्रस्तुत पद्य में इस प्रकार किया है ।) वयस्यनंगस्य वयस्यभूते भूतेश रूपेऽनुपमस्वरूपे । यदीविरायां कृतमन्दिरायां को नाम कामे विमनास्त्वदन्यः ॥ ३.२४ ऋषभदेव लोकोत्तर ज्ञानवान् नायक हैं। वे त्रिलोकी के रक्षक, त्रिकाल के ज्ञाता तथा त्रिज्ञान के धारक हैं (८.१६) । उन्होंने ज्ञानबल से मोहराज को धराशायी कर दिया । दम्भ, लोभ आदि उसके सैनिक तो कैसे टिक सकते थे (२.६६)। जैन परम्परा में ऋषभदेव को प्रथम राजा-पढमरायो-माना गया है। उनके अप्रतिहत शासन तथा प्रजा को आचार-मार्ग पर प्रवृत्त करने का काव्य में सूक्ष्म संकेत है (३.५) । वे समस्त कलाओं तथा शिल्पों के स्रोत तथा प्रथम तीर्थंकर हैं। उन्हीं के द्वारा आगम का प्रवर्तन किया गया । वे गार्हस्थ्य धर्म के भी आदि प्रवर्तक हैं (३.६)। ऋषभदेव के चरित के बहुमुखी पक्ष हैं । उनमें देव, गुरु, तीर्थ, मंगल, सखा, तात का अद्भुत समन्वय है । उनसे श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनके नाम से सशक्त कोई जपाक्षर नहीं, उनकी उपासना से बढ कर कोई पुण्य नहीं और उनकी प्राप्ति से बड़ा कोई आनन्द नहीं' । वस्तुतः कवि के लिये वे मात्र काव्यनायक नहीं, प्रभु हैं (१.४०)। सुमंगला ___ काव्य की नायिका सुमंगला ऋषभदेव की सगी बहिन तथा पत्नी है । उसका चरित्र ऋषभ के गरिमामय व्यक्तित्व से इस प्रकार आक्रान्त है कि वह अधिक विकसित नहीं हो सका है । वह कुलीन, बुद्धिमती तथा रूपवती युवती है । उसके सौन्दर्य के सम्मुख रम्भा निष्प्रभ है और रति म्लान है । उसके मुखमण्डल में चन्द्रमा तथा कमल की समन्वित रमणीयता निहित है । वह प्रियभाषिणी, पाप से अस्पृष्ट, सद्वृत्त से शोभित तथा मलिनता से मुक्त है । शिव का कण्ठ विष से, चन्द्रमा कलंक से तथा गंगा सेवाल से कलुषित है परन्तु सुमंगला का शील निर्मल तथा शुभ्र है (६.३८) । उसे असीम वैभव प्राप्त है । ऋषभदेव के साथ विवाह होने से वह और भी गौरवान्वित हो जाती है । जिन सुरांगनाओं का दर्शन मन्त्र-जाप से भी दुर्लभ है, ४३. स एव देवः स गुरुः स तीर्थ स मंगलं सैष सखा स तातः । वही, १.७३ तथा २.७१.
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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