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________________ जैन संस्कृत महाकाव्य सरःसीकरवृन्दानां वोढा मन्दं ववी मरुत् । प्रफुल्लपंकजोत्सर्पत्सौरभोद्गारसुन्दरः ॥ ३.३८ प्रभात के इसी वर्णन को प्रेषणीय बनाने के लिये कवि ने कुछ अलंकारों का भी प्रयोग किया है । प्रस्तुत पद्य में व्यतिरेक के प्रयोग से प्रभात का यह साधारण दृश्य आकर्षक बन गया है। मन्दिमानं गतश्चन्द्रो देवि त्वन्मुखनिजितः। प्रकाशयत्वथ जगत्प्रबुद्धं त्वन्मुखाम्बुजम् ॥ ३.३३ पार्श्व के जन्म के समय, प्रकृति, स्वाभाविकता छोड़कर अपना आदर्श रूप प्रकट करती है । जिनेश्वर के अवतरित होने पर शीतल समीर चलने लगी, दिशाएँ निर्मल हो गयीं, देववृक्षों ने पृथ्वी पर पुष्पवृष्टि की और आकाश दुन्दुभियों की ध्वनि से गूंज उठा (३.६८-७०) । काव्य में केवल एक स्थान पर प्रकृति को मानवी रूप दिया गया है । प्रकृति का मानवीकरण संस्कृत-कवियों का प्रिय विषय है, परन्तु पद्मसुन्दर का मन इसमें नहीं रम सका । पार्श्वप्रभु के समवसरण की रचना में अशोक चंचल पत्तों का हाथ हिलाकर नर्तक की भाँति नृत्य करता है। भौंरों का गुंजन उसका मधुर गीत है । शाखाएँ उसकी भुजाएँ हैं जिनसे वह अभिनय कर रहा है। यस्य पुरस्ताच्चलदलहस्तैर्नृत्यमकार्षीदिव किमशोकः । भंगनिनादैः कृतकलगीतः पृथुतरशाखाभुजवलनः स्वः ।। ६.८६ चरित्रचित्रण पार्श्वनाथकाव्य पर पौराणिकता इतनी हावी है कि उसने पात्रों का चरित्र पनपने नहीं दिया। उसे पौराणिक रेखाओं की सीमाओं में ही अंकित किया गया है। काव्य में केवल दो पात्र हैं, जिनका चरित्र कुछ विकसित हुआ है। वह भी उनके पुराण-वणित चरित्र से भिन्न नहीं है। पार्श्वनाथ काव्यनायक पार्श्वनाथ पूर्वजन्म का मरुभूति है, जो विविध जन्मों में भटक कर वाराणसी-नरेश अश्वसेन के पुत्र के रूप में जन्म लेता है। पौराणिक पात्र की भाँति वे विभूतिसम्पन्न पुरुष हैं। उनके जन्म के समय देवगण माता बामा की वन्दना करते हैं। उनका स्नात्रोत्सव देवराज के निर्देशन में सम्पन्न किया जाता है। उनका शैशव देवों के साहचर्य में बीतता है। वस्तुत: उनका चरित्र दिव्यता से इस प्रकार ओत-प्रोत है कि जन्माभिषेक से लेकर निर्वाण-पूजा तक, उनके जीवन से सम्बन्धित सभी कार्यों का अनुष्ठान देवता करते हैं । पार्श्वनाथ सुन्दर युवक हैं। यौवन में उनका कायिक सौन्दर्य ऐसे प्रस्फुटित
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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