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________________ ४०४ जैन संस्कृत महाकाव्य भान कराने के लिये विषम अलंकार का आश्रय लेता है। यहाँ सुकुमार राजकुमार तथा कष्टसाध्य दीक्षित जीवन, इन दो विरोधी चीज़ों का समवाय दिखाया गया है। क्व युवां सुकुमारांगी बाली राजकुमारको । क्व चेयं दुर्वहदीक्षा जिनेशकुलसेविता ॥८.८ इनके अतिरिक्त यशोधरचरित्र में सन्देह, दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास, विरोध, श्लेष, मालोपमा, अनुप्रास आदि भी प्रयुक्त किये गये हैं। पौराणिक काव्यों की भाँति यशोधरचरित्र में अनुष्टुप् की प्रधानता है। तृतीय सर्ग की रचना उपजाति में हुई है। सर्गों के आरम्भ तथा अन्त में प्रयुक्त होने वाले छन्दों के नाम इस प्रकार हैं-मालिनी, वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडित, उपेन्द्रवज्रा, स्रग्धरा तथा पृथ्वी । यशोधरचरित्र में कुल आठ छन्दों का प्रयोग किया गया है। यशोधरचरित्र के लेखक ने प्रायः सभी काव्य-धर्मों का स्पर्श किया है। काव्य से उसकी कवित्द-शक्ति का आभास भी मिलता है, किन्तु भवान्तर के वर्णनों तथा दार्शनिक सिद्धान्तों को अधिक महत्त्व देने के कारण यशोधरचरित्र धर्मकथा. सा (पैडागोगिक) बन गया है।
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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