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________________ जैन संस्कृत महाकाव्य 'अजनाभखण्ड' भारतवर्ष नाम से प्रसिद्ध हुआ । पुराण के वैष्णव परिवेश के अनुरूप भरत को परमभागवत के रूप में प्रस्तुत किया गया है । भागवत के शेष प्रकरण में ऋषभदेव के यज्ञानुष्ठान, धर्माचरण, लोकोपकार तथा योगविधि से शरीरत्याग का वर्णन है। जैन साहित्य में ऋषभचरित का प्राचीनतम निरूपण उपांगसूत्र जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में हुआ है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का संक्षिप्त विवरण ऋषभचरित की कतिपय सूक्ष्म रेखाओं का आकलन है । उसमें आदि तीर्थंकर के धार्मिक तथा परोपकारी साधक स्वरूप को रेखांकित करने का प्रयत्न है । ऋषभ के सौ पुत्रों में भरत की ज्येष्ठता तथा उनके राज्याभिषेक का संकेत जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी किया गया है। तीर्थंकर ऋषभदेव के जीवनवृत्त के दो मुख्य स्रोत हैं—जिनसेन का आदिपुराण (नवीं शताब्दी) तथा हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (बारहवीं शताब्दी) । इन उपजीव्य ग्रन्थों के फलक पर, भिन्न-भिन्न शैली में, समग्र ऋषभचरित अंकित किया गया है। जिनसेन ने चार विशाल पर्वो (१२-१५) में जिनेन्द्र के सम्पूर्ण चरित का मनोयोगपूर्वक निरूपण किया है । आदिपुराण का यह प्रकरण, विद्वत्ताप्रदर्शन तथा काव्यात्मक गुणों के आग्रह के कारण उच्च बिन्दु का स्पर्श करता है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में ऋषभचरित का अनुपातहीन किन्तु सरस वर्णन है। हेमचन्द्र ने जिस प्रकार ऋषभचरित का प्रतिपादन किया है, उसमें जिनजन्म के प्रस्तावना-स्वरूप मरुदेवी के स्वप्नदर्शन-सहित ऋषभ के जीवन के पूर्वार्द्ध ने आदिपर्व के द्वितीय सर्ग के लगभग पाँच सौ पद्यों का निगरण कर लिया है तथा संवेगोत्पत्ति तक के शेष भाग का केवल तीन सौ पद्यों में समाहार करने की चेष्टा की गयी है। जयशेखर ने कथानक के पल्लवन तथा प्रस्तुतीकरण में, कतिपय अपवादों को छोड़कर, बहुधा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का अनुगमन किया है । दोनों में इतना आश्चर्यजनक साम्य है कि जैनकुमारसम्भव की रचना त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के आदि पर्व को सामने रख कर की गयी प्रतीत होती है । वस्तुतः जयशेखर ने कथानक का स्थूल स्वरूप ही त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित से ग्रहण नहीं किया, विभिन्न प्रसंगों में उसके असंख्य भावों तथा वर्णनों को आत्मसात् करके काव्य की प्रकृति के अनुरूप उन्हें प्रौढ शैली तथा परिष्कृत भाषा में प्रस्तुत किया है। हेमचन्द्र तथा जयशेखर के मुख्य वृत्त १७. येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद्येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशन्ति । वही, ५.४.६ १८. वही, ११.२.७. १६. पढमराया पढमजिण पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवर चकवटी समुप्पाज्जित्था ।-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूत्र ३५.
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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