SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन संस्कृत महाकाव्य ३२२ नगर, सरोवर, मानवसौन्दर्य, तीर्थयात्रा आदि के अभिराम वर्णन मिलते हैं । छन्दों प्रयोग में भी प्रतिष्ठासोम ने शास्त्रीय विधान का पालन किया है । महाकाव्य के स्वरूप विधायक आन्तरिक तत्त्वों का प्रतिष्ठासोम ने इस तत्परता से पालन नहीं किया । सोमसौभाग्य का नायक वणिक्कुलोत्पन्न सोमसुन्दर हैं, जिन्हें उनकी संयमपूर्ण चर्या तथा वीतराग प्रकृति के कारण धीरप्रशान्त कोटि का नायक माना जायगा । यह पूर्णतया शास्त्र के अनुकूल नहीं है किन्तु देवों अथवा इतिहास - प्रसिद्ध प्रतापी राजाओं के अतिरिक्त चरित्रवान् कुलीन महापुरुषों को नायक के पद पर प्रतिष्ठित करके जैन कवियों ने संस्कृत महाकाव्य को यथार्थता का धरातल प्रदान किया है। धर्माचार्य के उदात्त जीवनवृत्त तथा उसकी धर्म प्रभावना से सम्बन्धित होने के कारण सोमसौभाग्य के कथानक को, शास्त्रीय शब्दावली में, 'सदाश्रित' माना जा सकता है । रस की दृष्टि से सोमसौभाग्य की स्थिति असंतोषजनक है। इसमें मुख्य रस के रूप में, शास्त्रसम्मत किसी रस का पल्लवन नहीं हुआ है । शान्तरस का स्वर काव्य में यदा-कदा अवश्य सुनाई पड़ता है । वात्सल्यरस शान्त का पोषक है । चतुर्वर्ग में से धर्म को इसका उद्देश्य माना जा सकता है । धर्मोपदेशों तथा अन्य धार्मिक कृत्यों का निरूपण करके आर्हत धर्म का प्रचार करना सोमसौभाग्य का मुख्य लक्ष्य है । इन स्थूलास्थूल तत्त्वों के अतिरिक्त इसमें समसामयिक समाज का यत्किचित् चित्रण भी दृष्टिगत होता है । इसकी भाषा सौष्ठव तथा माधुर्य से परिपूर्ण है । वास्तव में, धार्मिक व्यक्ति से सम्बन्धित काव्य को धर्मकथा बनने से बचाने का अधिकांश श्रेय इसकी सरस भाषा-शैली को है । सोमसौभाग्य की भाषा आधुनिक रुचि के बहुत अनुकूल है । स्वयं कवि ने दसवें सर्ग की पुष्पिका में काव्य को 'सुललित' विशेषण अभिहित किया है । इस प्रकार सोमसौभाग्य में महाकाव्य के प्रायः सभी तत्त्व कमबेश विद्यमान हैं । किन्तु जहाँ जैन कवि धर्मकथाओं तथा चरितों को भी महाकाव्य घोषित करने में संकोच नहीं करते, वहाँ प्रतिष्ठासोम ने अपनी कृति को कहीं भी महाकाव्य नाम से fe हीं किया है । पुष्पिकाओं में तथा अन्यत्र इसे केवल 'काव्य' कह कर सन्तोष कर लिया गया है । क्या प्रतिष्ठासोम के महाकाव्य -सम्बन्धी कुछ अन्य मानदण्ड थे ? अथवा उसने नम्रतावश सोमसौभाग्य को काव्य की संज्ञा दी है ? कवि तथा रचनाकाल सोमसौभाग्य के अन्तिम पद्यों में इसके प्रणेता तथा रचनाकाल के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सूचना निहित है । प्रतिष्ठासोम काव्यनायक सोमसुन्दर के विनीत शिष्य २. प्रज्ञाप्रकर्षरहितः स्वहिताय सोम सौभाग्यनाम सुभगं रचयामि काव्यम् ॥ सोमसौभाग्य, १.१०
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy