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________________ वस्तुपालचरित : जिनहर्षगणि ३०९ विशति-स्थानक-विचारामृत (सम्वत् १५०२), प्रतिक्रमणविधि (सम्वत् १५२५) तथा आरामशोभाचरित्र अन्य रचनाएं हैं। कथानक वस्तुपालचरित आठ प्रस्तावों की बृहत्काय काव्यरचना है। प्रथम प्रस्ताव में महामन्त्री वस्तुपाल-तेजःपाल के पूर्वजों, वीरधवल के पूर्ववर्ती शासकों, वीरधवल तथा वस्तुपाल के मिलन और वस्तुपाल-तेज:पाल को महामात्य पद पर नियुक्त करने का वर्णन है । वस्तुपाल इस शर्त पर यह पद स्वीकार करता है कि राज्य का संचालन न्यायपूर्ण रीति से किया जाए । द्वितीय प्रस्ताव में वीरधवल के युद्धों तथा वस्तुपाल के धार्मिक कृत्यों का निरूपण किया गया है । वस्तुपाल प्रजारंजन को शासक का लक्ष्य मानकर राजकाज में प्रवृत्त होता है । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह राजकोश को सम्पन्न बनाता है, सेना को सुगठित करता है और वीरधवल को दुष्टों को दण्डित करने के लिये प्रेरित करता है। वीरधवल वर्धमानपुर के शासक को युद्ध में परास्त कर अपना करद बनाता है तथा वनस्थली के शासकों-सांगण और चामुण्ड - को मारकर विजय प्राप्त करता है । मरुदेश के तीन पराक्रमी राजकुमार, अपने अग्रज के दुर्व्यवहार से तंग होकर, भद्रेश्वरनरेश प्रतिहारवंशीय भीमसिंह की शरण लेते हैं । वीरधवल उसपर भी आक्रमण करता है किन्तु रणकुशल राजकुमार सामन्तपाल के प्रहार से वह युद्धभूमि में घोड़े से गिर पड़ता है । वस्तुपाल अपनी नीति से उन राजकुमारों को अपने पक्ष में मिला लेता है जिससे वह भीमसिंह का उच्छेद करने में सफल होता है । प्रस्ताव के शेषांश में वस्तुपाल के धार्मिक कार्यों की विस्तृत तालिका दी गयी है । तृतीय प्रस्ताव में गोध्रानरेश की पराजय तथा तेज:पाल के लोकोपकारी कार्यों का वर्णन है । गोध्रा का शासक वीरधवल की प्रभुता स्वीकार नहीं करता जिससे क्रुद्ध होकर वह तेजःपाल को उसे बन्दी बनाने का आदेश देता है। तेजःपाल उसे पिंजड़े में डालकर, अन्यान्य बहुमूल्य वस्तुओं के साथ, अपने स्वामी को भेंट करता है। इस अपमान को सहन न कर सकने के कारण गोध्रानरेश आत्महत्या कर लेता है । प्रस्ताव का शेष भाग तेजःपाल द्वारा किये धर्मोद्धार के कार्यों के विस्तृत वर्णन से भरा पड़ा है । चतुर्थ प्रस्ताव में वस्तुपाल को खम्भात का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है । वहां वह भ्रष्ट समुद्री व्यापारी सादीक तथा उसके पक्षधर शंख को दण्डित करता है । पाँचवें प्रस्ताव में धर्मदेशनाओं तथा तीर्थमाहात्म्यों की भरमार है । छठे प्रस्ताव में महामात्यों की तीर्थयात्राओं का ८०१ पद्यों में अतीव विस्तृत तथा नीरस वर्णन है । सातवें प्रस्ताव में दिल्लीपति मोजदीन के आक्रमण की सूचना पाकर वस्तुपाल, आबून रेश धारावर्ष की सहायता से, यवनसेना को दुर्गम घाटियों में घेर लेता है। सामूहिक प्रहार से म्लेच्छ सेना छिन्न-भिन्न हो जाती है। मुसलमान
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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