SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन संस्कृत महाकाव्य सम्बन्धित अधिकांश घटनाएँ प्रमाण-पुष्ट हैं । हम्मीरमहाकाव्य में अन्तिम युद्ध से पूर्व पृथ्वीराज और सहाबुद्दीन के सात युद्धों की चर्चा है, किन्तु मुसलमान इतिहासकारों ने केवल दो युद्धों का उल्लेख किया है, जो अधिक विश्वसनीय है । हम्मीरमहाकाव्य तथा मुस्लिम स्रोतों में इस बात पर मतैक्य है कि पृथ्वीराज युद्ध में बन्दी बनाया गया था, उसका वध नहीं किया गया था। पृथ्वीराज की पराजय का कारण नटारम्म को मानना केवल कविकल्पना है । चतुर्थ सर्ग की प्राय: समस्त घटनाओं की प्रामाणिकता निर्विवाद है । जिस जल्लालदीन ने वीरनारायण को विष-प्रयोग से मरवा कर रणथम्भोर पर अधिकार किया था, वह शमशुद्दीन इत्तमिश था । तबकाते नासिरी के अनुसार यह घटना सन् १२२६ (६३३ हिजरी ) की है । रणथम्भोर को यवनों से वापिस लेने का श्रेय वाग्भट को है, जो नयचन्द्र तथा मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार प्रतापी शासक था । वाग्भट को यह विजय रजिया के राज्यकाल में प्राप्त हुई थी । ७५ अतः नयचन्द्र का यह कथन कि मुगलों द्वारा जल्लादीन पर आक्रमण का लाभ उठाकर वाग्भट ने रणथम्भोर दुर्ग को घेरा था, " चिन्त्य है । ७६ २६० हम्मीरकाव्य के अनुसार हम्मीर का राज्याभिषेक सम्वत् १३३६ की माघ शुक्ला पूर्णिमा, रविवार को सम्पन्न हुआ था । प्रबन्धकोश में अभिषेक का सम्वत् १३४२ दिया गया है । सम्भवत: जैत्रसिंह हम्मीर को अभिषिक्त करने के पश्चात् तीन वर्ष तक जीवित रहा । नवम सर्ग में हम्मीर की दिग्विजय का वर्णन है । देश की तत्कालीन राजनैतिक स्थिति हम्मीर जैसे प्रतापी योद्धा के अभियानों के लिये अनुकूल थी, परन्तु उसके बलवन - शिलालेख ( सम्वत् १३४५ ) के साथ नयचन्द्र के विवरण की तुलना करने से प्रतीत होता है कि हम्मीर की दिग्विजय उस क्रमबद्ध रूप में सम्पन्न नहीं हुई थी जैसे हम्मीरमहाकाव्य में वर्णित है । शिलालेख में हम्मीर के दो कोटियज्ञों का उल्लेख है पर उसकी दिग्विजय का सूक्ष्म संकेत भी नहीं है । मालवराज अर्जुन पर विजय ही हम्मीर की शिलालेख में उल्लिखित सैनिक उपलब्धि है । हम्मीर की तथाकथित दिग्विजय में यही एकमात्र ऐतिहासिक तथ्य प्रतीत होता है । इस सर्ग ( नवम) में नयचन्द्र ने जिस आक्रमण का उल्लेख किया है, वह, वस्तुतः जलालुद्दीन खल्जी के समय में हुआ था। भीमसिंह की मृत्यु के कारण वाद्यवादन से ७२. तबकाते नासिरी, तारीखे फरिश्ता तथा तबकाते अकबरी ७३. हम्मीरकाव्य, ३.६४ तथा तबकाते अकबरी १. पृ. ३६ ७४. हम्मीर महाकाव्य, ३ . ५८-६२ ७५. तबकाते नासिरी, पृ. २३४ ७६. हम्मीरमहाकाव्य, ४.१०१ ७७. यः कोटिहोमद्वितयं चकार श्रेणीं गजानां पुनरानिनाय । निर्जित्य येनार्जनमाजिमूध्नि श्रीर्मालवस्योज्जगृहे हठेन ॥ बलवन-शिलालेख, पद्य ११. ७८. हम्मीरायण की भूमिका, पृ० ११६
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy