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________________ हम्मीरमहाकाव्यः नयचन्द्रसूरि जैनाचार्य नयचन्द्र सूरिकृत हम्मीरमहाकाव्य' संस्कृत-साहित्य की अनूठी कृति है। चौदह सर्गों के इस वीरांक काव्य में राजपूती शोर्य की सजीव प्रतिमा, महाहठीहम्मीरदेव के राजनैतिक वृत्त तथा दिल्ली के प्रचण्ड यवन शासक अलाउद्दीन खिल्जी के साथ घनघोर युद्धों और अन्ततः उसके स्वर्गमन का मोरवपूर्ण इतिहास प्रशस्त एवं प्रोड शैली में वर्णित है। राजाश्रयी कवियों द्वारा रचित ऐतिहासिक महाकायों में, आश्रयदाता के संतोषार्थ इतिहास को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि उनमें तथ्य को कल्पना से अलग करना दुस्साध्य कार्य है। किन्तु निस्पृह जैन साधु का एकमात्र उद्देश्य देश तथा संस्कृति की रक्षा के लिये राष्ट्रवीर हम्मीर के प्राणोत्सर्ग की गौरवगाथा का यथावत् निरूपण करना है। उसे न राजसम्मान की आकांक्षा है, न धनप्राप्ति की लालसा । फलतः, हम्मीरमहाकाव्य का ऐतिहासिक वृत्त, कतिपय नगण्य स्थलों को छोड़कर, प्रायः सर्वत्र प्रामाणिक तथा निर्दोष है, जिसकी पुष्टि बहुधा समकालीन यवन इतिहासकारों के विवरणों से होती है। इसका काव्यगत मूल्य भी कम नहीं है । स्वयं नयचन्द्र को इसके काव्यात्मक गुणों पर गर्व है। हम्मीरमहाकाव्य का महाकाव्यत्व हम्मीरमहाकाव्य साम्प्रदायिक आग्रह से मुक्त, सही अर्थ में, निरपेक्ष काव्य है । इसके जैनत्व का एकमात्र घोतक छह पद्यों का मंगलाचरण है, जिनमें 'परमज्योति' की उपासना तथा, श्लेषविधि से, तीर्थंकरों से मंगल की कामना की गयी है, अन्यथा हम्मीरमहाकाव्य का समूचा वातावरण और प्रकृति वैदिक संस्कृति से ओतप्रोत है तथा यह इतिहास के तथ्यात्मक प्रस्तुतीकरण की श्लाघ्य भावना से प्रेरित है। इसकी रचना में काव्याचार्यों के विधान तथा महाकाव्य की बद्धमूल परम्परा का पालन किया गया है, यद्यपि कहीं-कहीं उनके बन्धन से मुक्त होने का साहसपूर्ण प्रयास भी दिखाई देता है । युद्ध-प्रधान काव्य में जलविहार, सुरत आदि के माध्यम से कामुकता का १. सम्पादक : मुनि जिनविजय, जोधपुर, सन् १९६८ २. पीत्वा श्रीनयचन्द्रवक्त्रकमलावि विकाव्यामृतं को नामामरचन्द्रमेव पुरतः साक्षान्न पश्येद् ध्रुवम् ।' आदावेव भवेदसावमरता चेत् तस्य नो बाधिका दुर्वारः पुनरेष धावतुतमा हर्षावलीविभ्रमः ॥ हम्मीरमहाकाव्य, १४११६
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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