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________________ -२४४ जैन संस्कृत महाकाव्य आने से पूर्व - प्रभु का विहार ( ५.२ - ९ ), भरत का षट्खण्डसाधन (८.१-१२ ), अमिनी सुन्दरी की दीक्षा | विद्या तथा बल देना, वैताढ्य पर उनका सुखभोग (५.१४), बाहुबलि के उद्यान में समवसरण में भरत का आगमन ( ७.४१ ) छद्मावस्था में बाहुबलि का तक्षशिला जाना, शान्तिनाथ नेमिनाथ पार्श्वनाथ शिवहरण (१.२) तथा षट्खण्डविजय द्वारा चक्रवर्तित्व की प्राप्ति । राजीमती का त्याग ( ३.२२) । कलिगपति यवनराज को परास्त करना, मेघमालिकुमार का उपसर्ग तथा पार्श्व द्वारा उसे पूर्व पद प्रदान करना ( ५.२६) । महावीर गर्भहरण, गोशाल के साथ विहार सिंह नामक ग्रामाधिकारी द्वारा गोशाल पर खड्ग-प्रहार, (५.२०), संगमदेव, नागकुमार का उपसर्ग ( ५.३३), देशना से मेघकुमार और अभयकुमार का चारित्र्य ग्रहण करना ( ७.३८), दुर्गन्धिका का संयमग्रहण और यवनकुमार का बोध ( ७.३९), अभयकुमार के दीक्षा ग्रहण करने से चिल्लणा के पुत्र कोणिक का राजा बनना ( ७.४१ ) । रामचन्द्र सीतास्वयम्वर (३.३४), धनुभंग ( ३.३१), वनगमन ( ३.३४, ४.३४), भरत को राज्य देना ( ४.३४), म्लेच्छ सेनापति द्वारा सीताहरण का प्रयास, राम के शस्त्र उठाने पर उस द्वारा क्षमायाचना ( ५.१६ ), शम्बूकवध ( ५.२० ), खरदूषणवध (५.२२), चारणर्षि के प्रभाव से गन्ध पक्षी का जटायु के रूप में परिवर्तन ( ५.१९), रावण का कपटप्रयोग (५.२२), स्वर्णमृग (४.३१), जटायुवध ( ५.३१), सीता हरण ( ५.३०), सुग्रीव से मैत्री ( ५.५१), हनुमान् का दौत्य ( ५.३५), रावण के विरुद्ध प्रयाण ( ५.४५ ) रावण की चिन्ता (५.५५), विभीषण का पक्ष - त्याग ( ५.२३), मेघनाद द्वारा हनुमान् को बन्दी बनाना ( ५.३८ ), लक्ष्मण पर शक्ति प्रहार ( ६.४९), राम की विजय ( ६.५४), विभीषण का राज्याभिषेक ( ७.३२), सीता की अग्निपरीक्षा ( ७.३२), बहु-विवाह (६.११), सपत्नियों के द्वेष के कारण सीता का निर्वासन ( ६.१२ ), सीता द्वारा दीक्षा ग्रहण करना ( ६ : १४), राम की शत्रुंजय यात्रा, मोक्षप्राप्ति ( ८.१६) । कृष्णचन्द्र रुक्मणी-विवाह (६.५४), कंस का विवाह के समय देवकी को केश खींच कर मारने का प्रयास ( ४.३८), कुवलयवंध ( ५.१), कंसवध ( ५.४०), कंस के
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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