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________________ जैन संस्कृत महाकाव्य भी उसका घर्षण नहीं कर सकता (१.२३) । सुराचार्य से बड़ा कोई विद्वान् नहीं, बाहुबलि से बड़ा कोई बलवान् नहीं। वह वैरिवंश के लिये दावाग्नि है, नीति का मण्डप है तथा पराक्रम का सिन्धु है" । उसके लिये युद्ध उत्सव के समान आनन्ददायी है (१.३०) । उसका विश्वास है कि उसे (बाहुबलि को) पराजित किये बिना भरत का चक्रवर्तित्व अधूरा है । समरांगण में उसके समक्ष आते ही भरत का षट्-खंडविजय से उत्पन्न अहंकार क्षण भर में चूर हो जाएगा। यह मात्र विकत्थना नहीं। द्वन्द्वयुद्ध में वस्तुतः उसके सामने भरत के छक्के छूट जाते हैं। हताश होकर भरत जब अपना चक्र छोड़ता है, उसे तोड़ने के लिये वह मुष्टि तान लेता है। संसार को ध्वंस से बचाने के लिये देवगण उसे मुष्टिप्रहार से रोकते हैं। - - भरताचरितं चरितं मनसा स्मर मा स्मर केलिमिव श्रमणः । १७.७३ वह देवताओं का अनुरोध तो मान लेता है और भरत के आचरण को भी भूल जाता है किन्तु उसका कर्म कभी व्यर्थ नहीं जा सकता। संकल्प और कर्म के सामंजस्य का यही आधार है । वह उसी मुष्टि से केशलुंचन कर तापसव्रत ग्रहण करता है और कालान्तर में केवलज्ञान प्राप्त करता है । बाहुबलि स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देता है । उसका व्यक्तित्व अधीनता की अस्वीकृति की सर्वोत्तम व्याख्या है। ... भरत का दूत काव्य का एक अन्य उल्लेखनीय पात्र हैं। वह अपने कर्म में दक्ष है तथा उसमें दूतोचित शिष्टता है । बाहुबलि की सभा में वह निर्भीकतापूर्वक अपने स्वामी का पक्ष प्रस्तुत करता है तथा उसके शौर्य का वर्णन करता है । यद्यपि बाहुबलि, इसे अपनी वीरता को चुनौती समझकर, उत्तेजित हो जाता है और उसे अपमानपूर्वक सभा से बाहर निकाल देता है पर वह न अपना सन्तुलन खोता है, न शिष्टता ही छोड़ता है। स्वामिभक्ति उसके जीवन का सर्वस्व है । वह स्वामी के आदेश का निष्ठा से पालन करता है और सदैव उसका अनुगमन करना अपना कर्त्तव्य मानता है । ४२. कः पण्डितः सुराचार्यात् को देवादधिको बली। वही, ११.७७ ४३. वही १६.४२-४३ ४४. षट्खण्डविजयात् तेन जिष्णुता या त्ववाप्यत । ____ अपूर्व जिष्णुतामाप्तुं मत्तस्तामयमीहते ॥ वही, ३.२४ ४५. भवांस्तुलां तस्य रथांगपाणेर्न कांचिदारोहति शौर्यसिन्धुः । वही, २.८७ तथा २.६१,६५ ४६. वयं चरा: स्वामिनिदेशनिघ्नाः । वही, २.२७
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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