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________________ बंकचूलचरियं ३८-३९. मैं मृत्यु दंड ग्रहण कर सकता हूं किन्तु रानी को कभी नहीं । उसका यह वचन सुनकर राजा मन में बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसे शीघ्र अपना पुत्र बनाकर अपने पास रख लिया और अपनी अपराधिनी पत्नी को मृत्युदंड दे दिया। ४०. राजा की यह वाणी सुनकर बंकचूल ने राजा के पैरों में गिर कर इस प्रकार निवेदन किया-रानी को मृत्यु दंड न दें। ४१. रानी मेरी माता के समान है। अत: इसे यह दंड न दें। उसका यह निवेदन सुनकर राजा ने उसे मृत्यु दंड से मुक्त कर दिया। ४२. लेकिन राजा ने अपने मन में विचार किया- यह चरित्रहीन है । अत: मैं इसे किंचित् भी नहीं चाहता। . ४३. जो व्यक्ति चरित्रहीन के साथ रहता है या उससे सदा प्रेम करता है वह भाव से चरित्रहीन ही है, ऐसा ज्ञानियों ने कहा है। ४४. अत: मैं इसे कभी भी अपने महल में नहीं रख सकता । चाहे अपना हो या पराया, बुरे कार्य करने वाले को राजा सदा दंडित करे । ४५. जो राजा चरित्रहीन होता है या उसकी पत्नी चरित्रहीन होती है उसका निश्चित ही पतन होता है । वह कभी जनप्रिय नहीं हो सकता। ४६. इस प्रकार मन में विचार कर राजा ने अपने अनुचरों से कहा- इस कुशीला को शीघ्र ही मेरे महल से बाहर निकाल दो। ४७. राजा की आज्ञा पाकर अनुचरों ने तत्काल रानी को बाहर निकाल दिया। जो व्यक्ति बुरा काम करता है, वह उसका बुरा ही फल पाता है । ४८. बंकचूल अपनी बहिन और पत्नी को राजमहल में लाकर पुत्र रूप में राजा के पास रहता है और चोरी करना छोड़ देता है। अष्टम सर्ग समाप्त
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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