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________________ बंकचूलचरियं अष्टम सर्ग १. जब व्यक्ति गुरु के पास या स्वयं व्रतों को ग्रहण करता है तब कष्ट उसे विचलित करने के लिए चेष्टा करते हैं। २. जो व्यक्ति परीषहों से कभी चलित नहीं होते वे अपूर्व लाभ को प्राप्त करते हैं, इसमें संशय नहीं। ३. एक बार रात्रि के समय वह दृढव्रती, कुशल, बंकचूल चोरी के लिए अकेला ही किसी राजमहल में गुप्तरूप से जाता है। ४. जब वह अपनी दक्षता से अन्दर प्रविष्ट होता है तब अचानक शीघ्र ही रानी उसे देख लेती है और वह भी रानी को देख लेता है। ५-६. उसके रूप को देखकर रानी मुग्ध हो गई। उसने प्रेमपूर्वक पूछातुम कौन हो? यहां कैसे आए हो? और कहां से आए हो? निर्भय होकर सब कहो । यहां दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है अत: तुम अपनी मानसिक बात बताओ। ७. रानी के इस प्रकार प्रिय वचन सुनकर उसने निर्भय होकर अपना गुप्त परिचय दे दिया। ८. मैं चोर हूं और चोरी करने के लिए यहां आया हूं । अन्य कोई कारण नहीं है। उसकी यह बात सुनकर तब उस चतुर और कामुक रानी ने इस प्रकार कहा ९. यहां धन का अभाव नहीं है, यहां जो कुछ भी है वह तुम्हारा है । यहां रहकर तुम आनन्द प्राप्त करो और मन में कुछ भी चिन्ता मत करो। १०. यद्यपि राजा मुझे बहुत स्नेह करता है फिर भी मैं तुम्हारे में आसक्त होकर अभी उसका तिरस्कार करती हूं और तुम्हें अपना समर्पण करती हूं। ११. तुम निश्चित ही भाग्यवान् मनुष्य हो अत: मैं सब कुछ अर्पण करती हूं। शीघ्र मेरे वचन को स्वीकार करो, यही मेरा निवेदन है। . १२. जब मनुष्य कामुक हो जाता है तब वह कुल के यश को नहीं सोचता। वह अधम कार्य करता है और अपने स्वरूप को भी भूल जाता है ।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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