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________________ बंकचूलचरिवं १२-१३. तलवार का शब्द सुनकर उसकी बहन जग गई । अपने भाई को सम्मुख देखकर वह उठ खड़ी हुई और उसका अभिवादन तथा मंगलकामना करने लगी। भाई को आया हुआ देखकर कौन बहिन प्रसन्न नहीं होती ? ५२ १४. अपनी बहिन को पुरुष-वेष में देखकर वह विस्मित हुआ और सोचने लगा- इसने इस समय पुरुष-वेष क्यों धारण कर रखा है ? १५-१६. अपने भाई को विस्मित देखकर बंकचूला ने कहा- मुझे पुरुष वेष में देखकर तुम्हारे मन में निश्चित यह प्रश्न उत्पन्न हुआ होगा कि मैने अभी पुरुष - वेष क्यों धारण किया है ? अतः संशयनाशक मेरे रहस्यपूर्ण वचन सुनो । १७. तुम्हारी गुप्त प्रवृत्तियों को जानने के लिए राजा के दूत नट के वेष में आज सायंकाल यहां आए। यह जानकर मैंने सोचा १८. जब वे इस बात को पायेंगे कि तुम अभी यहां नहीं हो तो इस बस्ती को निश्चित ही उजाड़ देंगे, इसमें संदेह नहीं है । १९. अत: मैने चतुराई से तुम्हारे वस्त्र पहनकर सभा में आकर उनका नाटक करवाया । २०-२१ जब वे दक्षिणा लेकर गए तब बहुत रात बीत गई थी । मैं थक गई और घर आकर बिना वस्त्र बदले भाभी के साथ सो गई । इस पुरुष-वेष को धारण करने का अन्य कोई प्रयोजन नहीं था । बहिन की यह बात सुनकर बंकचूल मन में सोचने लगा २२. अहो ! व्रतों ने मेरे प्राणों की रक्षा की और व्रतों ने ही मेरी बहिन के प्राणों की रक्षा की । अन्यथा मेरी क्या गति होती ? 1 २३. अतः मुझे अन्य व्रतों का भी दृढमन से पालन करना चाहिए । निश्चित ही वे भविष्य में मेरे लिए सुखद होंगे। सप्तम सर्ग समाप्त
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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