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________________ बंकचूलचरियं सप्तम सर्ग १-२. जिस कृत कार्य में मनुष्य को लाभ प्राप्त होता है उसमें उसकी रुचि और अधिक बढ़ जाती है और वह पुन: अधिक श्रम करने लगता है ।कृत कार्य में हानि देखकर उसका मन खिन्न हो जाता है । यह विज्ञान सम्मत बात है, इसमें कोई संशय नहीं है। ३. जिनका मन लाभ में प्रसन्न नहीं होता और अलाभ में खिन्न नहीं होता, वे विरले ही हैं। ४. व्रत का साक्षात् लाभ पाकर बंकचूल की व्रतों के प्रति श्रद्धा बढ़ गई ।वह दास के साथ अपने गांव में आया। ५. जब वह अपने घर पर आया तब रात्रि का एक प्रहर बीत गया था । घर के दरवाजे बंद देखकर उसके मन में ये विचार उत्पन्न हुए ६-७-८. मेरी पत्नी चरित्र हीन है अथवा शीलवती-इसका मुझे निरीक्षण करना चाहिए। ऐसा विचार कर उसने अपनी कुशलता से दरवाजे खोले और विस्मयान्वित होकर अन्दर गया। अपनी पत्नी को किसी के साथ सोई हुई देखकर वह कुपित हो गया और इस प्रकार सोचने लगा-यह नीति वचन सत्य है कि स्त्रियों का विश्वास नहीं करना चाहिए। ९. तलवार निकालकर जब वह उस पुरुष को मारने के लिए उद्यत हआ तब शीघ्र ही उसे दूसरे नियम की स्मृति हो गई। १०. यद्यपि वह मारने के लिए आतुर था फिर भी अपने नियम का पालन करता है । जिस कृत कार्य में मनुष्य को लाभ प्राप्त होता है क्या वह कभी उसे छोड़ता है? ११. व्रत का पालन करने के लिए जब वह सात-आठ कदम पीछे जाता है तब अचानक दरवाजे से उसकी तलवार टकरा जाती है।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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